मन को निर्मल और निश्चल बनाने का साधन है सत्संग, ध्यान और पूजा-पाठ: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, थोड़ा-सा वैराग्य और मन को वश में करने का अभ्यास भगवत्प्राप्ति के आवश्यक सोपान हैं। जिनको नाम जप का अभ्यास काफी हो चुका है, उन्हें संत कहा करते हैं कि भले ही 10-20 माला तुम कम जप लो लेकिन अब थोड़ा ध्यान का अभ्यास करो। हम-सबने नाम तो खूब जपा अब थोड़ा ध्यान की ओर ध्यान दो। शास्त्र कहते हैं कि ध्यान के समान पाप को नष्ट करने वाला दूसरा कोई साधन नहीं है। नाम का जप तो बिना मन के हो जायेगा, पाठ भी बिना मन के हो जायेगा, पूजा भी बिना मन के हो जायेगी, कथा भी जैसे-तैसे बिना मन के सुन लोगे, लेकिन ध्यान बिना मन के नहीं हो पायेगा और पकड़ना मन को है क्योंकि मन जिस क्षण पकड़ में आ गया, उसी समय मनमोहन का दर्शन हो गया। तालाब का पानी हिल रहा है, आप अपना प्रतिबिंब देखना चाहो दिखेगा? या पानी गंदा हो तो दिखेगा? जल में अपना प्रतिबिंब तब दिखेगा जब दो बातें होंगी। जल निर्मल हो और जल निश्चल हो, यह बात समझ लें। निर्मल और निश्चल जल में ही आपको अपना प्रतिबिम्ब दिख सकता है। मान लो मन शांत है, लेकिन निर्मल नहीं है तो दर्शन नहीं होगा और मन निर्मल है, लेकिन शान्त तो नहीं है, चंचल है तो भी दर्शन नहीं होगा। मन की चंचलता को समाप्त करना है। क्योंकि यह श्रीमान जी दौड़ते रहते हैं। सचमुच में यदि आप प्रातः काल से सायंकाल तक नोट करो कि मन कहां कहां गया तो पूरी रामायण नहीं आधी रामायण के बराबर तो लिखा ही जायेगा। ऐसे चंचल मन में भगवान कहां दिखेंगे? भगवान कब दिखते हैं जहां ध्यान का वर्णन आया है समाज का वर्णन आया है वहां लिखा है कि मन निर्मल और निश्चल हो जाये तो अपने भीतर ही बाहर भी भगवान दिखने लगते हैं। मन को निर्मल और निश्चल बनाने का साधन, सत्संग, ध्यान, पूजा पाठ ही है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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