पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कलियुग में उत्पन्न होने वाले जीवों का कल्याण करने के लिए ही श्रीशिवमहापुराण की रचना हुई है। भगवान शंकर दया के मूर्त रूप हैं,करुणा के मूर्त रूप हैं। वैसे यह कहा जाता है कि पिता का पुत्र की अपेक्षा पौत्र से ज्यादा स्नेह होता है। ऐसा कहा जाता है, क्योंकि बच्चे बड़े होकर अपने काम में लग जाते हैं, पौत्र छोटे होने के कारण दादा के समीप रहते हैं, इसीलिए उनके प्रति ज्यादा आकर्षण हो जाता है। इस संसार में जितने जीव हैं, ये भगवान् शंकर को बहुत प्यारे हैं क्योंकि भगवान् शंकर इस दृष्टि से दादा है। बाकी हैं देव, ये हो गये महादेव। महादेव से देवता आये और देवताओं से मनुष्य की सृष्टि हुई, इसीलिए मनुष्य उन्हें बहुत प्यारे हैं। कलियुगी जीवों का कल्याण कैसे हो? भगवान शंकर के मन में एक बार भाव उठा, उसी आधार पर भगवान् शंकर ने श्रीशिवमहापुराण की रचना की थी। यह श्रीशिवमहापुराण परम पावन है। यह समस्त पुराणों का तिलक है। इसका श्रवण करना सबसे श्रेष्ठ है। जिसे शिवभक्ति चाहिये, जिसे शिव की प्रसन्नता चाहिये, उसे श्रीशिवमहापुराण अवश्य सुनना चाहिये। श्रीशिवमहापुराण के श्रवण से भक्ति देवी प्रकट होती हैं और वह अपने पुत्रों को भी साथ ले आती है। श्री भक्ति देवी के दो पुत्र हैं- ज्ञान और वैराग्य। जो व्यक्ति श्रीशिवमहापुराण को श्रद्धा से पढ़ेगा या श्रवण करेगा उसे अंत में भगवान की प्राप्ति अवश्य हो जागी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)