पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।।द्वारिका लीला एवं भक्तों की भक्ति भावना।। पांडवों की विजय के बाद जब भगवान् श्री कृष्ण द्वारिका पहुंचे यथा योग्य भगवान् सबसे मिले। माता-पिता बड़ों को वंदन किये, बराबर वालों से मिले, अपने से छोटों का अभिवादन स्वीकार किये और ऐसा करते हुए भगवान् महल में पधारे। जब भगवान् श्रीकृष्ण महलों में पहुंचे, रानियां-पटरानियां दर्शन करने आई। मर्यादा शास्त्र की, माता-पिता, सास-ससुर, सब बैठे हैं। उनके मन में लालसा हुई कि ठाकुर जी के हम गले लगें, ठाकुर जी को गले लगायें, लेकिन अभी कैसे हो सकता है? उन्होंने बड़ी सुंदर युक्ति निकाली, आप सब भक्तों के लिये बहुत अच्छी बात है। उन्होंने अपने बच्चों को ठाकुर जी के पास भेज दिया। ठाकुर जी को गले लगाना चाहती थी। ठाकुर जी वहां बैठे हैं। मर्यादा है, लेकिन हृदय मान नहीं रहा। भगवान् से गले लगकर सबके छोटे-छोटे बच्चे भाग कर वापस मां के पास जाते हैं। माँ उन्हें गले लगाकर सोचती है कि- हम श्यामसुंदर के गले लग गये। बच्चे को ठाकुर जी ने गले लगाया, बच्चे को गले लगाते समय माँ बच्चे को गले नहीं लगा रही, भावना यह है कि श्यामसुंदर को गले लगा रही हैं। भक्तों की भी यही भावना है। माला ठाकुर जी के गले में पहनाई हुई है। यदि पुजारी माला उतार कर आपको दे रहा है, माला पुजारी ने गले में डाल दी और आपने तुरंत उतार दी। वह माला छः घंटे, बारह घंटे, ठाकुर जी के गले में लगी रही तो भगवान् के दिव्य परमाणु उसमें प्रवेश कर चुके हैं, जब आपके गले में वह माला डाली जा रही है तो आप भी ऐसी कल्पना करो कि आपका कन्हैया ही आपके गले से आकर लग गया। माला के रूप में वही भाव पैदा करो। प्रसाद है, वो प्रसाद मैं पा रहा हूं। भावना को अपनी थोड़ा प्रबल करो और फिर देखो आपके जीवन में क्या चमत्कार घटित होते हैं। चमत्कार भावना पर है। भावो हि भवतारनम् – य यत श्रद्धा स एव सः। भावना ही मनुष्य का जीवन बदल देती है, गीता में भगवान ने कहा- जिसकी जैसी श्रद्धा, उसका वैसा स्वरूप। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)