नई दिल्ली। कई साल से देश प्रकृतिक महामारी और देवीय आपदाओं को झेल रहा है जिसमें जान माल का काफी नुकसान हो रहा है। पहाड़ों पर बादल फटने, लगातार बारिश होने, भू स्खलन, बाढ़, सूखा, कोरोना जैसी महामारी के बाद तरह- तरह के रोगों के प्रसार ने लोगों की जिन्दगी को हिला कर रख दिया है।
एक ओर जहां देश के कई राज्यों में अतिशय वर्षा से बाढ़ की स्थिति बेकाबू हो गई है, वहीं उत्तर प्रदेश सहित देश के कई राज्यों में कहीं सूखे से तो कहीं बाढ़ से हाहाकार की स्थिति उत्पन्न हो गई है। यह मौसम का असन्तुलित स्वरूप है और इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है जिसके चलते ऐसी हालात हो गई है।
लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड आदि राज्यों में पहले से ही काफी कम वर्षा हुई है। जून, जुलाई के बाद अगस्त माह में भी अच्छी बरसात नहीं देखने को मिली है। यहां फसलों की बुआई प्रभावित है। 2022-23 के लिए खरीफ अभियान के तहत 13 जुलाई तक प्रदेश में 96.03 लाख हेक्टेयर में बुआई का लक्ष्य रखा गया था लेकिन इस साल अब तक 42.41 लाख हेक्टेयर से भी कम ही बुआई हो पाई है।
इसका सबसे ज्यादा असर धान की बुआई पर पड़ा है। जहां फसलें बोई गई है वहां भी प्राकृतिक परिवर्तन के काऱण उत्पादन पर असर पड़ने की संभावना है। उत्तर प्रदेश में आगरा ही एकमात्र शहर है जहां सामान्य वर्षा दर्ज की गई है लेकिन प्रदेश के 19 जिले ऐसे हैं जहां अभी तक सामान्य से काफी कम वर्षा हुई है।
ललितपुर, फिरोजाबाद, खीरी, देवरिया, एटा और बिजनौर आदि में वर्षा का प्रतिशत काफी कम होने से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई है। उधर मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया आदि में बह रही गंगा में पहाड़ों के पानी के कारण बाढ़ की हालत बन गई है। यह उत्पादन को प्रभावित करेगा और महंगाई बढ़ाने में सहायक ही होगा। अब प्रशासनिक अमले को काफी सक्रिय होने की जरूरत है। महामारी, आपदा, सूखे के साथ ही बाढ़ प्रभावितों की मदद में राज्यों को बड़े पैमाने पर राहत कार्य चलाए जाने की जरूरत है जिससे संकट में फंसे लोगों के जीवन को सुरक्षित किया जा सके।