नई दिल्ली। अमेरिका के नेतृत्व में जर्मनी में आयोजित विश्व के सात बड़े लोकतांत्रिक और अमीर देशों के समूह जी-7 शिखर सम्मेलन काफी सफल माना जाएगा। इस सम्मेलन में जहां भारत का अच्छा प्रभुत्व देखने को मिला वहीं इससे पूरी दुनिया को मजबूत सन्देश भी दिया गया। वैश्विक पटल पर भारत के प्रति बढ़ते भरोसे का ही यह प्रतिफल है कि भारत को एक प्रमुख सहयोगी के रूप में प्रतिष्ठा मिली है।
सम्मेलन में अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई जिससे आज पूरा विश्व प्रभावित हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु, ऊर्जा और स्वास्थ्य के मुद्दों के साथ ही ऊर्जा की बढ़ती कीमतों का भी मुद्दा उठाकर उस पर जी-7 देशों को सोचने का अवसर दिया है। उन्होंने सदस्य देशों से आग्रह किया है कि वह भारत में स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश करने के लिए आगे आए।
भारत आज स्वच्छ ऊर्जा का सबसे बड़ा बाजार बन गया है। इसलिए यहां शोध और उत्पादन में अच्छा निवेश किया जा सकता है। भारत हर नई तकनीक को सस्ता बनाने में पूरी तरह से सक्षम है। जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए भी भारत अपने संकल्पों के अनुरूप प्रदर्शन कर रहा है। उन्होंने इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को भी रेखांकित किया।
प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि ऊर्जा की पहुंच पर अमीर देशों का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए। गरीब देशों को भी उनका अधिकार मिलना चाहिए। भारत ने दुनिया को बता दिया है कि लाखों टन कार्बन उत्सर्जन को कैसे बचाया जा सकता है । यह सत्य है कि भारत निवेश का एक सुरक्षित स्थल बन गया है।
पिछले पांच वर्षों में 64 अरब अमेरिकी डालर का निवेश स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में आया है। शिखर सम्मेलन में चीन को घेरने की भी रणनीति सराहनीय है। जी-7 ने चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एण्ड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का उचित जवाब देने का निर्णय किया है और इसके लिए कमर कस लिया गया है। इससे चीन की मुश्किलें बढ़ना स्वाभाविक है। दुनिया में ढांचागत परियोजनाओं पर छह अरब डालर खर्च करने का निर्णय स्वागत योग्य है।