नई दिल्ली। राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की बढ़ती संख्या लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को बार-बार राजनीतिक दलों को नसीहत देनी पड़ती है, लेकिन उसका असर राजनीतिक दलों पर कितना पड़ता है, यह विचारणीय विषय है।
आम आदमी पार्टी के नेता सत्येन्द्र जैन को मंत्रिमण्डल से बर्खास्त करने के मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीशचन्द्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा है कि अदालत मंत्री को हटाने का निर्देश नहीं दे सकती है लेकिन उम्मींद करती है कि मुख्यमंत्री मंत्रियों की नियुक्ति करते समय मतदाताओं के उन पर किए गए विश्वास को बनाए रखेंगे।
मुख्यमंत्री को तय करना होगा कि आपराधिक पृष्ठभूमि और भ्रष्टाचार के आरोप वाले व्यक्ति को मंत्री बने रहने की अनुमति दी जा सकती है या नहीं। दिल्ली उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी मुख्य मंत्रियों और देश के लिए नजीर है। हर दल सत्ता के सुख के लिए आपराधिक छवि वाले लोगों को अपना प्रत्याशी बनाने से नहीं चूकता है।
यही कारण है कि राजनीति में दागी छवि वालों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। विभिन्न राज्यों में मंत्रीगण गिरफ्तार हो रहे हैं, लेकिन पार्टी किसी के खिलाफ कोई काररवाई नहीं करती है, जबकि राजनीति में शुचिता की बात तो बहुत की जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने धन- बल से पद प्राप्त कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं और लोकतंत्र के मन्दिर को कलंकित करते हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले मंत्री को मंत्रिपरिषद में रखने या हटाने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री पर डालकर आईना दिखाने का काम किया है। यह जवाबदेही तो तय होनी ही चाहिए जिससे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को मंत्रिपरिषद से बाहर रखा जा सके।