रोचक जानकारी। पृथ्वी पर पानी की मौजूदगी को लेकर बहुत सारी अवधारणाएं और सिद्धांत है। उनको लेकर कई तरह के साक्ष्य भी मिले हैं, जिससे यह रहस्य और गहरा होता रहा है। नए अध्ययन में विस्तृत विश्लेषण के द्वारा वैज्ञानिकों ने बताया है कि पृथ्वी पर सौरमंडल के निर्माण के शुरुआत से मौजूद पानी किस तरह से आया और कैसे भारी जल के प्रमाण बताते हैं कि पृथ्वी का पानी कितना पुराना है। यहां बताया गया है कि किस तरह से चरणबद्ध तरीके से पानी पृथ्वी पर आया जो आज आधे से ज्यादा पृथ्वी के जलभंडार में मौजूद है।
सौरमंडल में शुरू से है मौजूद :-
पहले से ही वैज्ञानिकों का मानना रहा है कि सौरमंडल में शुरू से ही बहुत सारी मात्रा में पानी था। पानी की उत्पत्ति कोई रहस्य नहीं है। जियोसाइंस वर्ल्ड एलिमेंट्स में प्रकाशित वी ड्रिंक गुड 4.5 बिलियन ईयर ओल्ड वाटर नाम के शोधलेख के शोधकर्ता, सेसिलिया सेसैरेलीऔर फ्यूजून डू सेसेरैली के अनुसार प्रमाण बताते हैं कि पानी पृथ्वी पर 4.5 अरब साल पहले से मौजूद है।
पहले ठंडी ऑक्सीजन से बनी बर्फ :-
इस लेख में बताया गया है कि सौरमंडल के शुरू में विशाल आणविक बादल में हाइड्रोजन और पानी प्रमुख तत्व थे जिनके साथ कार्बन यौगिक और सिलिकेट की धूल थी। यहां ऑक्सीजन धूल के दानों पर चिपक कर जम जाया करती थी और हाइड्रोजन की प्रतिक्रिया से दो तरह की बर्फ बनी। सामान्य पानी और हाइड्रोजन के आइसोटोप, ड्यूटेरियम वाला भारी जल।
भाप बन डिस्क में फैली :-
इसके बाद गुरुत्व के प्रभाव से बादलों का पदार्थ केंद्र की ओर एकीकृत हो जाता है और अंदर बर्फ भाप में बदलने लगती है जिससे केंद्र के आसपास एक गर्म वातावरण बन जाता है जो कोरीनो कहलाता है, जिसमें पानी सबसे ज्यादा मात्रा में होता है। इसके बाद तारा घूमने लगता है और चक्रिका बन जाती है जिसे प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क कहते हैं जिससे बाद में पूरे सौरमंडल का निर्माण होता है। इसके बाद भाप फिर बर्फ में बदलती है और प्रोटोप्लैनेटरी चक्रिका तक पहुंचने लगती है और सौरमंडल अपना आकार लेने लगता है और बर्फ वाली धूल ग्रह, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु आदि में पहुंचने लगती है। पृथ्वी के पानी में इस तरह के प्रमाण मिले हैं कि यही पानी आज भी पृथ्वी पर बहुतायत में मौजूद है। जिसका प्रमुख संकेत भारी जल और समान्य जल का अनुपात है।
दो तरह के पानी का निर्माण :-
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा कोई दूसरा तरीका नहीं है कि गर्म कोरिनोस में इतनी ज्यादा मात्रा में भारी जल आ सके और साथ ही पानी दो तरह से जमा होता है। एक तो सौरमंडल के निर्माण के समय और दूसरा ग्रहों के निर्माण के समय। दोनों ही अलग-अलग अवस्थाओं में होता है जिनमें उनके आइसोटोपिक संकेत रह जाते हैं। पहली प्रक्रिया में पानी 4.5 अरब साल पुराना है और पृथ्वी पर पानी कैसे आया इसके लिए वैज्ञानिकों पृथ्वी पर पानी और ड्यूटेरियम जल का मात्रा का मापन किया और उनका अनुपात निकाला।
पृथ्वी पर जल का अनुपात :-
जहां गर्म कोरिनो में पानी पृथ्वी के पानी से दस हजार गुना ज्यादा था, और वहां पानी और भारी जल का अनुपात भी अलग है। गर्म कोरिनोस जैसे जगह पर अब भी भारी जल बनते देखा जा सकता है। पूर्व शोधों में वैज्ञानिकों ने वहां के पानी/भारी जल के अनुपात की तुलना धूमकेतु उल्काओं आदि से की है। पृथ्वी पर यह अनुपात सौरमंडल की शुरुआत से दस गुना अधिक है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर 1 से लेकर 50 प्रतिशत पानी सौरमंडल के शुरुआत के समय का पानी हो सकता है, यह सटीक नहीं है। फिर भी बहुत ज्यादा जानकारी देने वाला तथ्य जरूर है। पृथ्वी पर काफी पानी क्षुद्रग्रहो, उल्काओं और धूमकेतुओं से भी आ सकता है। इस अध्ययन में कई सवाल अनुत्तरित हैं, लेकिन यह इसे दिशा मे अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है। भारी जल वह एक अहम कड़ी हो सकता है जिससे हमें इस चक्रव्यूह को तोड़ सकते हैं।