पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्या मोरारी बापू ने कहा कि शास्त्र के विधान को जानकर कर्म करें। शास्त्र मर्यादा को छोड़कर जो मनमाना कर्म करता है उसे सिद्धि नहीं मिलती। इहलोक और परलोक में भी कोई सुख प्राप्त नहीं होता। शबरी जैसे प्रेम की अधिकता होनी चाहिए।
हमारे लिये यह जरूरी है कि हम नेमव्रत का पालन करें। जब तक नियम नहीं बनाओगे तब तक भगवान् के चरणों में प्रेम नहीं जागेगा। भगवान् के चरणों में अनुराग गंगा की धारा है, भक्ति दिये की लौ है। वासना धुआं है। शास्त्र विहित कर्म करते रहो। तब मन का मैल धुलता है और भगवत प्रेम पैदा होता है।जहां भगवान् की लीला हुई, उनका प्राकट्य हुआ, उस स्थान को धाम कहते हैं।
भगवान् के धाम में जाकर कुछ दिन वहां रहे। धाम में निवास नहीं तो कुछ दिन यात्रा करें।भगवान् की लीला मंगलकारी है और हमें शिक्षा देने के लिये है। इसलिये भगवान् का अवतार होता है। दूसरे धर्म में भगवान् अवतार नहीं लेते। हमारे धर्म में यह व्यवस्था है। भगवान् सर्वशक्तिमान हैं।अवतरण का अर्थ है उतरना। धर्म और विज्ञान एक दूसरे के विरोधी नहीं है। धर्म और विज्ञान की भाषा अलग-अलग है।
दोनों सत्य की खोज कर रहे हैं। विज्ञान वाह्य की खोज करता है। धर्म आंतरिक खोज करता है। विज्ञान चलकर तथ्यों को स्वीकार करता है धर्म मानकर चलता है। दोनों एक दूसरे के पूरक होना चाहिए। धर्ममय विज्ञान हो और विज्ञानमय धर्म हो। विज्ञानमय धर्म से ही ज्ञान होगा। धर्म के विज्ञान को मानोगे तभी धर्म को मानोगे नहीं तो कोरा कर्मकांड होगा।
सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।