लाइफ स्टाइल। स्वस्थ और प्रसन्न रहने के लिए हंसना भी बहुत जरूरी है। हंसना सस्ती दवा है, एक व्यायाम है। इससे शारीरिक कोशिकाओं का पुनर्निर्माण होता है। बालक बेफिक्र हंसता-खेलता सदा प्रसन्न रहता है। उसे देखकर अन्य लोग भी प्रसन्न तथा आकर्षित हो जाते हैं। हंसते रहना वरदान है।
मुंह लटकाकर बैठे रहना अभिशाप है। इससे मन विक्षिप्त होता है और तरह- तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। हास्य प्रधान व्यक्ति जिन्दगी की विषमताओं का सामना करते हुए जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करता है। महापुरुषों के भारी कार्य भार, संघर्षों से भरे जटिल जीवन की सफलता का रहस्य उनके हंसते रहने और मुस्कुराहट भरे जीवन दर्शन में छिपा है। इससे कई प्रकार की अंदरूनी असाध्य बीमारियों से निजात पाया जाता है।
प्रसन्नचित्त मनुष्य कठिन से कठिन समस्याओं का हल सरलता पूर्वक निकाल लेता है। तत्ववेता स्टर्न ने कहा है, ‘मुझे विश्वास है कि हर बार जब कोई व्यक्ति हंसता है तो वह अपने जीवन की वृद्धि करता है।‘ डा. विलियम ने अपने प्रयोगों के आधार पर सिद्ध किया कि उठकार हंसने से, सदैव प्रसन्न रहने से पाचन संस्थान ठीक होता है, रक्ताणु वृद्धि करते हैं। स्त्रायु संस्थान ताजा होता है और स्वास्थ्य बढ़ता है। अन्य शोधकर्ताओं के अनुसार खिलखिलाकर हंसने पर मानसिक संस्थानों का तनाव आश्चर्यजनक रूप से दूर हो जाता है।
हंसने से छाती और पेट की नसें, पेशियां विशेष रूप से प्रभावित होती हैं और सक्रिय बन जाती हैं। श्वास- प्रश्वास द्वारा आक्सीजन अधिक मात्रा में ग्रहण की जाती है। शरीर के जीवन तत्व सक्रिय होकर स्वास्थ्य को पुष्ट बनाते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अपने खोज प्रयोग के आधार पर यह सिद्ध किया कि ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, उत्तेजना, भय, चिंता जैसे मनोविकारों से मनुष्य शरीर में जो विष पैदा हो जाता है, उसके शोधन के लिए हास्य एक अनुभूत प्रयोग है।
हास्य विनोद पूर्णरूपेण शुद्ध, मुक्त और सहज हो । सर्वोत्कृष्ट अवस्था में हास्य आंतरिक प्रसन्नता आत्मा के स्फुरण की अभिव्यक्ति है। दूसरों का उपहास उड़ाकर किया जाने वाला हास्य विपत्ति का कारण बनता है। द्रौपदी ने दुर्योधन के गिरने पर व्यंगात्मक हंसी जाहिर की थी, जिसका परिणाम बहुत बुरा देखने को मिला।
संत इमर्सन ने कहा, हास्य एक चतुर किसान है, जो मानव के जीवन-पथ के कांटों, झाड़-झंखाड़ों को उखाड़ कर अलग करता है और सद्गुणों के सुगंधित पेड़ लगा देता है, जिससे हमारी जीवन यात्रा सरल बन जाती है। मनुष्य को सात्विक हास्य विनोद का अवलंबन लेना चाहिए। ऐसी हंसी हंसे जिससे मनहूसों और मायूसों के चेहरों पर भी मुस्कान दौड़ पड़े, दुखियों के दिलों में प्रसन्नता भर जाय। अपनी और सबकी व्यथा, भार, क्लेश, ग्लानि दूर हो।