जानें आलूबुखारे का रोचक इतिहास…

रोचक जानकारी। आलूबुखारा एक मौसमी फल है। यह खट्टे-मीठे रस से भरा होता है। इसका रस शरीर को कई रोगों से बचाता है। यह दिल की रक्षा करता है और ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करता है। हजारों सालों से पूरी दुनिया इसका मजेदार स्वाद ले रही है।

काले, पीले, हरे रंग का भी होता है आलूबुखारा:-

भारत में आलूबुखारे की खेती कम होती है और इसकी आवक पहाड़ी इलाकों से अधिक है, जिनमें हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर शामिल हैं। यह अफगानिस्तान में भी खूब उगता है और अमेरिकियों का पसंदीदा फल है। वहां इसका प्रयोग वाइन व शराब बनाने के लिए भी किया जाता है। भारत में तो यह डार्क रेड कलर का पाया जाता है, जबकि कई देशों में इसका रंग काला, पीला और हरा भी होता है। यह फल चेब, चेरी, रसभरी, खुबानी परिवार से है। इसकी सबसे ज्यादा पैदावार चीन में होती है, उसके बाद यह सर्बिया व यूएसए में उगाया जाता है। पूरी दुनिया में इसकी करीब 200 किस्में हैं।

भारत में इसका नाम आलूबुखारा कैसे पड़ा?

भारत में इसे आलूबुखारा (Plum) क्यों कहा जाता है, इसे लेकर जो जानकारी है, उसके अनुसार, आलू शब्द पुर्तगाली है और उज्बेकिस्तान के एक प्राचीन शहर का नाम बुखारा है। दूसरी ओर, फारसी में इस फल को आलू कहा जाता है, लेकिन भारत में इस फल का नाम आलूबुखारा है। माना जाता है कि मुस्लिम शासकों के भारत में आने के बाद इस फल का नाम आलूबुखारा हो गया। वैसे संस्कृत भाषा में इसका नाम ‘आरुकम’ है और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में इसे आज भी इस जैसे मिलते-जुलते नाम से पुकारा जाता है।

भारत में कहां से आया ?

कहा जाता है कि इसकी एक जाति प्रूनस सैल्सिना की उत्पत्ति चीन से हुई है, लेकिन इसका विकास जापान में बहुत ज्यादा हुआ और वहां से यह दुनिया के बाकी क्षेत्रों में फैला। चीन में आलूबुखारे को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इसका इतिहास ईसा पूर्व करीब 2000 वर्ष पुराना है। यह भी कहा गया है कि मिस्र के पिरामिडों के अंदर पाई गई ममी में सूखे आलूबुखारे के अवशेष मिले हैं। वनस्पति विज्ञानी यह भी कहते हैं कि आलूबुखारा यूरोपीय और एशियाई फलों की विभिन्न प्रजातियों से उपजा संकर नस्ल का फल है, तभी इसे यूरोपीय या एशियाई के रूप में भी वर्गीकृत किया जाता है। माना जाता है कि भारत में यह चीन के जरिए ही पहुंचा।

चरकसंहिता’ में इसे पित्त-कफ नाशक माना गया है:-

भारत में आलूबुखारा लगभग 2000 वर्ष से उगाया और खाया जा रहा है, क्योंकि उस दौरान लिखे गए आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में खट्टे-मीठे आलूबुखारे की गुणों का वर्णन किया गया है। ग्रंथ के अनुसार, यह फल पित्त व कफ को बांधता है, तासीर में बहुत गर्म नहीं होता है। अगर आज के हिसाब से देखें तो कच्चे आलूबुखारे में 11% कार्बोहाइड्रेट, 87% पानी, 1% प्रोटीन और 1% वसा, 1% फाइबर भी होता है। इसे कम कैलोरी वाला फल भी माना जाता है।

सेहत को पहुंचाएगा कई लाभ:-

आलूबुखारे में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, विटामिन सी, ए, के भी रहता है, जिससे शरीर की हड्डियां स्वस्थ रहती हैं। अगर इसका नियमित सेवन किया जाए तो यह बैड कोलेस्ट्रॉल को भी रोकता है। यह शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स बैलेंस (रक्त की क्वॉलिटी) को बनाए रख सकता है। अगर इसे संतुलित खाएंगे तो लाभ ही लाभ है। इसका अधिक सेवन परेशानी का कारक बन सकता है, जैसे पेट में गैस बढ़ जाएगी, एसिड बढ़ सकता है और जी मिचलाने के साथ-साथ उल्टी भी हो सकती है। इसको खाने से कोई बड़ा नुकसान नहीं होता है। वैसे भी यह खट्टा-मीठा होता है, इसलिए शरीर इसे ज्यादा खाने से खुद ही रोक लेता है।

 

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