कांवड़ रुट पर होटल मालिकों को लाइसेंस, पंजीकरण प्रमाणपत्र दिखाना होगा, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

Delhi: कांवड़ रुट पर भोजनालयों के लिए क्यूआर कोड को लेकर यूपी सरकार को बड़ी राहत मिली है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने QR कोड की व्यवस्था पर रोक लगाने से इनकार किया कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी होटल मालिकों को लाइसेंस, पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने आदेश में कहा कि आज कांवड़ यात्रा का आखिरी दिन है, ऐसे में कानून के मुताबिक हर होटल वाले को लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन की डिटेल को डिस्प्ले करना होगा।

QR कोड पर क्या था सरकार का तर्क?

हर साल सावन के महीने में लाखों शिव भक्तों द्वारा की जाने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों, ढाबों और दुकानों को QR कोड लगाने का आदेश दिया था। क्योंकि हिंदू कैलेंडर के ‘श्रावण’ माह में भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगाजल लेकर विभिन्न स्थानों से कांवड़ लेकर आते हैं। अनेक श्रद्धालु इस महीने में मांसाहार से परहेज करते हैं और अनेक लोग प्याज तथा लहसुन युक्त भोजन भी नहीं खाते। इन QR कोड को स्कैन करने पर दुकान मालिकों के नाम, धर्म और अन्य जानकारी का पता चलता था। सरकार का तर्क था कि यह कदम खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और तीर्थयात्रियों को दुकानों की स्वच्छता के बारे में जानकारी देने के लिए उठाया गया था।

सुनवाई में SC ने दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा के रास्ते में आने वाले सभी होटलों और ढाबों के लिए आदेश जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि ‘दुकानदारों को लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन से जुड़े सभी निर्देशों का पालन करना होगा।’ कोर्ट ने QR कोड के मामले पर सुनवाई के दौरान आगे कहा कि ‘हम यह भी साफ करते हैं कि ‘इन मुद्दों पर फिलहाल विचार करने की नहीं सोच रहे हैं।कोर्ट में उस मामले के तहत सुनवाई हुई, जिसमें दुकानदारों को अपनी दुकानों के आगे अपनी पहचान को उजागर करने के निर्देश दिए गए थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने यह आदेश उन दुकानदारों के लिए जारी किया था, जिनकी दुकानें, ढाबे और रेस्टोरेंट कांवड़ यात्रा के मार्ग में आते हैं।

याचिकाकर्ताओं को डर- इससे सांप्रदायिक हिंसा बढ़ने का खतरा

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि दुकानदारों के नाम प्रदर्शित करने के लिए कहना भेदभाव है और साथ ही यह कांवड़ियों के लिए संकेत है कि उन्हें किस दुकान को नजरअंदाज करना है। उनके अनुसार, दुकानदारों के नाम प्रदर्शित करने के लिए कहना भेदभाव है और साथ ही यह कांवड़ियों के लिए संकेत है कि उन्हें किस दुकान को नजरअंदाज करना है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्हें डर है कि सरकार के इस फैसले से सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा और इससे भीड़ हिंसा की आशंका भी बढ़ जाएगी, खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के दुकानदारों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं हो सकती हैं। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार का आदेश निजता के अधिकार का उल्लंघन है। गौरतलब है कि बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों के ऐसे ही निर्देश पर रोक लगा दी थी। 

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