नई दिल्ली। अभी तक देश में कोरोना की पहचान सिर्फ ह्यूमन सैंपलिंग से होती थी, लेकिन अगले सप्ताह से देश में कोरोना वायरस की पहचान के लिए नाले के कीचड़ की जीनोमिक सर्विलांसिंग की जाएगी। यानी कि अब नाले के कीचड़ से देश में कोरोना वायरस की न सिर्फ पहचान होगी, बल्कि उसकी गंभीरता के साथ-साथ इलाके में वायरस के प्रभाव का भी अंदाजा लगाया जाएगा।
शुरुआती चरण में देश के 25 बड़े शहरों में यह पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा। दुनिया में इतने बड़े स्तर पर कोरोना वायरस की पहचान करने वाला भारत इकलौता देश होगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश पर देश में पहली बार इस तरीके का सबसे बड़ा और अनोखा जिनोमिक सर्विलांस शुरू होने जा रहा है।
देश में कोरोना पर नजर रखने वाली नेशनल कोविड टास्क फोर्स टीम के डॉक्टर एनके अरोड़ा कहते हैं कि अभी तक पूरे देश में तीन तरह से कोरोना वायरस की ह्यूमन सैंपलिंग से पहचान की जा रही थी। इसके लिए अस्पताल से मरीजों और उनके संपर्क में आए लोगों के सैंपल लिए जाते थे।
पब्लिक प्लेस पर रेंडम कम्युनिटी सैंपलिंग होती थी। इसके अलावा एयरपोर्ट पर और बस स्टैंड पर आने जाने वालों के सैंपल लेकर वायरस की पहचान की जा रही थी। डॉक्टर एनके अरोड़ा के मुताबिक अब पहली बार कोरोना वायरस की पहचान के लिए एनवायरमेंटल सर्विलांस का सहारा भी लिया जा रहा है।
भारत दुनिया का पहला देश होगा, जो एक साथ कई शहरों में इस तरीके की जिनोमिक सर्विलांस शुरू करेगा। नेशनल कोविड टास्क फोर्स टीम के डॉक्टर एनके अरोड़ा कहते हैं कि इस तरह जीनोम सर्विलेंसिंग से गटर और नालों में बहकर आने वाले इंसानी मल मूत्र से वायरस की पहचान की जा सकेगी।