पृथा के पुत्र होने के कारण अर्जुन कहलाते हैं पार्थ: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ ज्ञानविज्ञानयोग एवं अक्षरब्रह्मयोग माता कुन्ती का एक नाम पृथा है। पृथा के पुत्र होने के कारण अर्जुन पार्थ कहलाते हैं। महाभारत युद्ध में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने इसलिए भगवान श्री कृष्ण का एक नाम पार्थ सारथी है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-अर्जुन! जिसने अपना मन मुझमें लगा लिया, मेरा आश्रय लेकर भजन उपासना करते हैं, वही
मुझको सही ढंग से समझ पाते हैं। भगवान कहते हैं- अर्जुन! हजार व्यक्ति में एक आस्तिक मिल जाय तो बहुत है। हजार व्यक्ति में एक व्यक्ति भी ईश्वर को मानने वाला हो बहुत है। आप सोचो हर व्यक्ति मेरा भजन करने लगे हैं, असंभव है। दुनियां में हजारों व्यक्तियों में कोई एक बहुत सुंदर होता है। हजारों में कोई एक विद्वान होता है। हजारों में कोई एक धनवान होता है। हजारों में कोई एक बलवान होता है। वैसे हजारों में कोई एक भक्तिमान होता है। जो वस्तु कीमती होती है, उसके ग्राहक भी कम होते हैं। साग-सब्जी वाली भीड़ जौहरी के यहां नहीं होती। चंदन कहीं-कहीं मिलता है, सामान्य पुष्प सब जगह मिल जाता है। केसर कहीं-कहीं मिलता है। इसी तरह सामान्य आदमी हर जगह मिल जाता है, भगवान का भजन करने वाला सच्चा आसक्ति कहीं-कहीं मिलता है।
हजारों मनुष्यों में कोई एक मुझे पाने की कोशिश करता है। कोशिश करने वाले हजारों, लाखों में कोई मुझे प्राप्त कर पाता है। जल में रस मैं हूँ, सूर्य-चंद्र में तेज और शीतलता मैं हूँ। अज्ञानी को ईश्वर दिखाई नहीं देता।ज्ञानी की दृष्टि से ईश्वर कभी ओझल नहीं होता। अज्ञानी कहता है, ईश्वर कहां है। किसने देखा? भक्त और ज्ञानी कह रहे हैं- ईश्वर कहां नहीं है। परमात्मा सब देख रहे हैं, सावधान होकर जीवन जिओ। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्री दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव के अंतर्गत श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ के छठें दिवस ज्ञानविज्ञानयोग एवं अक्षरब्रह्मयोग की कथा का गान किया गया। कल की कथा में अगले उपदेशों का गान किया जायेगा।