सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा में आई तेजी से कमी

रिसर्च। प्रदूषण की खबरों के बीच एक अच्छी खबर आई है। भारत के वातावरण में पिछले एक दशक में सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा में तेजी से कमी आई है। एक स्टडी में पिछले 3 दशकों के सल्फर डाईऑक्साइड के आंकड़ों का मिलान किया गया था।

सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा में आई गिरावट के पीछे सख्त पर्यावरण कानून और ऐसी तकनीक का इस्तेमाल है जिससे सल्फर डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो। ये स्टडी आईआईटी खड़गपुर के सेंटर ऑफ ओशन्स, रिवर्स, एटमॉस्फियर एंड लैंड साइंस (कोरल) ने की है। संस्थान के प्रवक्ता ने बताया कि पिछले 4 दशकों (1980-2020) में पूरे भारत में सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा में भारी बदलाव आया है।

थर्मल प्लांट और भवन निर्माण बढ़ाते हैं गैस का स्तर:-
स्टडी के दौरान पाया गया है कि सल्फर डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में थर्मल पावर प्लांट्स का योगदान 51 फीसदी और भवन निर्माण जैसी गतिविधियों का 29 फीसदी रहा है। ये बात भी सामने आई है कि भारत में 1980 से 2010 के बीच सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा में तेज बढ़त देखने को मिली। इसके पीछे का कारण ऊर्जा जरूरतों के लिए कोयले को जलाना और ऐसी नई तकनीक का कम इस्तेमाल रहा है जो उत्सर्जन को कम रखें।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2001-2010 की अवधि के दौरान तेजी से आर्थिक विकास ने सल्फर डाईऑक्साइड के स्तर को बढ़ाने में मदद की है।  हालांकि, पिछले दशक के दौरान तकनीकी प्रगति और पर्यावरण नीतियों ने वायुमंडलीय सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा को कम करने में मदद की है।

अक्षय ऊर्जा उत्पादन में हुई वृद्धि:-
संस्थान के निदेशक प्रोफेसर वी के तिवारी ने कहा, 2010 के बाद से, भारत के अक्षय ऊर्जा उत्पादन में भी काफी वृद्धि हुई है क्योंकि देश ने एक सतत विकास नीति अपनाई है। ऊर्जा उत्पादन में पारंपरिक कोयले से नवीकरणीय स्रोतों में बदलाव, ठोस पर्यावरण विनियमन, और प्रभावी तकनीक से देश में सल्फर डाईऑक्साइड प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी, पेरिस समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान में 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40 फीसदी संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करना शामिल है।

कम हो जाती है बारिश:-
टीम का नेतृत्व करने वाले प्रो. जयनारायण कुट्टिपूरथ का कहना है कि सल्फर डाईऑक्साइड प्रदूषणकारी है और नमी की स्थिति में ये सल्फेट के महीन कणों में परिवर्तित हो जाती है। ये महीन कण क्षेत्रीय स्तर पर बादलों के निर्माण और बारिश को प्रभावित कर सकते हैं। वातावरण में भारी मात्रा में मौजूद सल्फर डाईऑक्साइड इन्सानी सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती है।

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