पुष्कर/राजस्थान। परम-पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कलियुग में महासाधन तीन हैं- “श्रोत्रेण श्रवणं तस्य” कानों के द्वारा भगवान् के गुणों का और उनकी लीला का श्रवण करना, “वचसा कीर्तनं तस्य”, वाणी से सदा शिव नाम का जप करना तथा मनसा मननं तस्य ” , मन के द्वारा उन्हीं के स्वरूप का मनन करते रहना, “महासाधन मुच्यते” इनको महासाधन माना गया है।
यदि व्यक्ति सदा ये तीन साधन करता रहे, तब उसे कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। उसको परम तत्व का अनायास बोध हो सकता है। दुनियां में सबसे श्रेष्ठ महासाधन क्या है। एक साधन होता है और दूसरा महासाधन होता है, एक प्रसाद होता है दूसरा महाप्रसाद होता है जैसे जगन्नाथ जी का प्रसाद महाप्रसाद कहलाता है। जैसे गंगा के जल को पानी कह देना, यह गंगा का अपमान होता है, किसी बड़े व्यक्ति को तू कहना, उसका अपमान होता है।
तब महासाधन क्या हुआ? कानों से कथा सुनो, वाणी से उनका संकीर्तन करते रहो और मनसे उनका मनन करते रहो, इसको महासाधन कहते हैं। यह त्रिवेणी है। जैसे गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी है, यह मन, वाणी और श्रोत्र की त्रिवेणी है। कानों से श्रवण, मुख से कीर्तन और मन से मनन, ये तीर्थराज प्रयाग आपके जीवन में अवतरित हो गया।
ये तीनों कार्य कुछ कठिन हैं, क्योंकि मन बड़ा चंचल है, यह भगवद् भजन, कथा-कीर्तन और सुमिरन में लगता नहीं, इन तीनों साधनों के अभाव में भी क्या जीव का कल्याण हो सकता है? सूत जी कहते हैं- हो सकता है। वह कहते हैं कि तीन काम न हो सके, तब भी जीव का कल्याण हो सकता है, शंकर की पिंडी की पूजा श्रद्धा और विश्वास के साथ कर लें,जब तुम्हारा शरीर छूटने लगेगा, तब शंकर की कृपा से तुम्हें ज्ञान हो जायेगा और तुम सीधे परमधाम चले जाओगे। शर्त यह है कि पूजन में श्रद्धा हो, धन्ना जाट की तरह विश्वास हो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)