राजथान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि गुलाब बाबा की धूनी, देव दरबार का पावन स्थल-परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में समस्त भक्तों के स्नेह और सहयोग से सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय सर्वे भवन्तु सुखिनः श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ के सप्तम दिवस भागवत कथा के वक्ता-राष्ट्रीय संत श्री-श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि- भगवान हमारे हृदय की के भावों को देखते हैं। सुदामा चरित्र में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि कोई भक्त प्रेम पूर्वक एक पत्ता, एक पुष्प, एक फल अथवा थोड़ा सा जल भी भक्ति पूर्वक मुझे समर्पित करता है तो, भक्ति पूर्वक समर्पित उस वस्तु को मैं स्वीकार कर लेता हूं। हम भगवान के निमित्त क्या वस्तु चढ़ा रहे हैं, इसका ज्यादा महत्व नहीं है। हम किस भावना से चढ़ा रहे हैं इस बात का विशेष महत्व है। भाव का भूखा हूं मैं, भाव ही बस सार है।
भाव से मुझको भजे तो, भव से बेड़ा पार है।। भाव विन जो कुछ भी दे, मैं कभी लेता नहीं। भाव का एक पुष्प भी वह सहर्ष स्वीकार है।। रामहिं केवल प्रेम पियारा। जानि लेहू जो जान निहारा।। मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किये जोग जप ज्ञान विरागा।। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपह्तं स्नामि प्रयतात्मनः।। व्यापारी माल में नहीं कमाता, भाव में ही कमाता है। हजारों टन सामान उसके पास हो, लेकिन भाव डाउन हो गया तो व्यापारी की हानि हो जाती है। भाव अच्छा हो गया तो व्यापारी मालोमाल हो जाता है। अध्यात्म क्षेत्र में भी जो मानव शरीर- कबीर, सूर, तुलसी, मीराबाई को प्राप्त हुआ, वही मानव शरीर हम आपको भी प्राप्त हुआ है । उनको परमात्मा के चरणो में भाव उत्पन्न हो गया, उनका बेड़ा पार है। हम लोगों को भी प्रतीक्षा है। हमारे-आपके जीवन में भी परमात्मा के चरणों में अनंत भाव होगा, तो हमारा आपका जीवन भी सफल हो। भजन, सत्संग, स्वाध्याय, करते- करते, ईश्वर में श्रद्धा, भक्ति स्वतः उत्पन्न होती है और जीवन सफल हो जाता है।