कोलकाता। बंगाल की राजधानी कोलकाता में राज्य सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच सड़क पर संघर्ष से उत्पन्न स्थिति अत्यन्त ही दुर्भाग्यपूर्ण है। हिंसक झड़प के दौरान पुलिस और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हाथापाई और बल प्रयोग से हाबड़ा और कोलकाता का इलाका रणक्षेत्र बन गया था। इसमें 50 पुलिसकर्मी और 363 भाजपा कार्यकर्ता घायल हो गए।
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलाई। प्रदर्शनकारियों ने भी तोड़-फोड़ और आगजनी की। पूरे घटनाक्रम की गम्भीरता को देखते हुए उच्च न्यायालय ने ममता बनर्जी सरकार से 19 सितम्बर तक रिपोर्ट मांगी है। भाजपा ने भ्रष्टाचार और जंगलराज के खिलाफ मार्च निकाला था। सुवेन्दु अधिकारी ने आरोप लगाया है कि ममता सरकार तानाशाही कर रही है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी भाजपा पर अनेक आरोप लगाए हैं। कोलकाता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने गृह सचिव को रिपोर्ट देने के साथ ही सभी गिरफ्तार लोगों को रिहा करने का भी आदेश दिया है। घटना के बाद तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप- प्रत्यारोप भी तेज हो गया है लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है।
लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन का अधिकार सभी को है लेकिन इसमें हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह जांच का विषय है कि विरोध प्रदर्शन क्यों हिंसक हो गया। राज्य में कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी सरकार और विपक्ष दोनों की है। अशान्ति के हालात जनहित में नहीं हैं। उन लोगों के खिलाफ काररवाई होनी चाहिए जिनके कारण स्थितियां बिगड़ी हैं। गृह सचिव की रिपोर्ट से जो बातें सामने आती हैं, उन पर भी विचार होना चाहिए।