नई दिल्ली। बढ़ती महंगाई जहां लोगों की कमरतोड़ रही है, वहीं सरकार के लिए कठिन चुनौती बनी हुई है। महंगाई के मोर्चे पर आम आदमी सहित सरकार की कोशिशों को एक बार फिर झटका लगा है। खुदरा महंगाई दर फिर बढ़कर सात प्रतिशत पर पहुंच गई है। सरकार के तमाम उपायों के बावजूद देश में महंगाई दर लगातार आठवें महीने भारतीय रिजर्व बैंक के तय लक्ष्य के ऊपर बना होना है, यह जताता है कि सरकार के प्रयास प्रभावी नहीं है और लगातार महंगाई बढ़ रही है।
महंगाई किन कारणों से नियंत्रित नहीं हो रही है उन कारणों पर प्रहार जरूरी है। हालांकि मानसूनी बारिश असामान्य होने से अनाज और सब्जियों के दाम में तेजी आई है। देश में गेहूं की मुद्रास्फीति पहले से दहाई अंक में बनी हुई है। बाढ़ और सूखे ने चावल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर डाला है। इससे आगे भी खाद्य पदार्थों की कीमतों पर और दबाव बढ़ेगा। पैक्ड गैर-ब्राण्डेड खाद्य पदार्थों पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगाए जाने से भी खुदरा महंगाई दर प्रभावित हुई है।
महंगाई का मसला सिर्फ आर्थिक नहीं है, राजनीतिक भी है। यदि सरकार तेजी से इस पर कोई कड़ा कदम नहीं उठाती है तो इससे राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ सकता है, इसलिए वित्त मंत्रालय ने ट्वीट कर भरोसा जताया है कि महंगी को काबू में लाने के उठाए गए कदमों का असर आने वाले महीनों में दिखेगा।
गेहूं, आटा, चावल आदि के निर्यात पर रोक लगा दी गई है, इससे आम आदमी को मंहगाई से कितनी राहत मिलेगी, यह तो आने वाले समय में ही पता लगेगा लेकिन लोगों को तत्काल राहत की जरूरत है इसलिए इसे प्राथमिकता का विषय बनाकर शीघ्र कार्य शुरू किए जाने की जरूरत है। हालांकि महंगाई कम करने की जिम्मेदारी अकेले केन्द्र पर नहीं छोड़ी जा सकती है। राज्यों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी और बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ठोस उपाय करने होंगे।