पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्या मोरारी बापू ने कहा कि हरि व्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम ते प्रगट होइ मैं जाना।। हर घट मेरो साईयां, खाली घट ना कोय। बलिहारी वा घट की जा घट प्रगट होय।। सब जगह मौजूद है पर नजर में आता नहीं। योग साधन के बिना कोई उसे पाता नहीं।
तुम दूर भी हो इतना कि आते नहीं नजर, नजदीक भी हो इतना कि दिल में बनाये घर। स्वच्छंद भी हो इतना कि चलते अदर बदर, पाबंद भी हो इतना कि हर श्वांस के अंदर।। सर्वं विष्णुमयं जगत्।। ईश्वर व्यापक है। व्यापक है, इसलिये उनका कहीं अभाव नहीं है। जो व्यापक है उसे ढूंढने की जरूरत नहीं है। सर्वदा है। पांच कोष शास्त्रों में लिखा है संत जन कहा करते हैं कि हरेक मनुष्य से परमात्मा पाँच कोस दूर हैं।
मगर यह दूरी अंदर की ओर है बाहर की ओर नहीं। पाँच कोस माने पंचेन्द्रियाँ, ये पांच कौन से हैं? अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश, और आनन्दमय कोश। ये पांच कोश हैं और यह पाँच कोस का अंतर काटकर उससे जो ऊपर उठते हैं, उनसे पार जाते हैं, उन्हें आत्मा और परमात्मा मिलते हैं। भेद रेखा जल से उठी हुई तरंग जल से अलग नहीं है।
इसलिये आत्मा परमात्मा से अलग नहीं है। इसलिये तो अध्यात्म मार्ग के पथिक संत जन कहते हैं-‘ आत्मा सो परमात्मा ‘ इसलिये आत्मा ही परमात्मा है। परमात्मा और जीवात्मा के बीच में थोड़ी भेद रेखा है, उसे समझने की कोशिश करना चाहिये। आत्मा परमात्मा का अंश है। शब्द मंत्र शब्द जब अपने अर्थ को पूर्णतया प्रकट करता है तब शब्द की अपनी ताकत इतनी बढ़ जाती है कि शब्द को ब्रह्म कहते हैं वह शब्द मंत्र बन जाता है।
स्वाध्याय सत्यं वद, धर्मं चर, मातृदेवोभव, पितृदेवोभव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव। ऐसे आदेश उपनिषद में दिये गये हैं। इसलिये स्वाध्याय करना चाहिए। स्वाध्याय करने से जो चिंतन का खजाना भरा पड़ा है, वह हमें मिलता है। समग्र विश्व के लिये हमारे ऋषि-मुनियों के जो वचन हैं, वह संदेश सभी को दे सकते हैं। यही बांट सकते हैं क्योंकि यही प्रसाद है।
प्रसाद को बांटना चाहिए, प्रसाद को अकेले नहीं खाना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।