किसी वरदान से कम नहीं है यह सुगंधित लकड़ी, बेहद दिलचस्प है इतिहास…

रोचक जानकारी। भारत के विभिन्न धर्मों विशेषकर हिंदू धर्म में चंदन को विशेष महत्व दिया जाता है। भारत के धार्मिक व आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसके उपयोग व विशेषताओं का वर्णन तो है ही, साहित्य भी इससे अछूता नहीं है। चंदन के कई उपयोग हैं- दवाएं, इत्र, सौंदर्य प्रसाधन के अलावा इसका उपयोग फर्नीचर और सजावटी सामान बनाने में भी किया जाता है। अन्य देश भी चंदन की लकड़ी का उपयोग करते हैं। देश के जाने-माने कवि रहीम कह चुके हैं कि ‘जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग. चंदन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।’

कहां से हुई चंदन की उत्पत्ति:-

चंदन कई प्रकार होते हैं, लेकिन पीले व लाल चंदन का महत्‍व अधिक होता है। चंदन संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ है ‘सुगंधित लकड़ी’। संस्‍कृत भाषा में ही इसके अन्य नाम भी हैं, जैसे मलयज, चंद्रश्रुति, श्रीखंड, भद्रश्री आदि। इसके वृक्ष भारत के अलावा श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, हवाई और दूसरे प्रशांत द्वीप में पाए जाते हैं। पूरे विश्व में भारतीय व आस्ट्रेलियन चंदन की सबसे अधिक मांग है। भारत में चंदन की उत्पत्ति ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से प्रसिद्ध दक्षिणी भारतीय पर्वत मलाया में हुई है। यही कारण है कि चंदन को मलयज भी कहा जाता है। मलाया पर्वत से बहने वाली हवा ठंडी और सुगंधित मानी जाती है।

धार्मिक रुप से महत्वपूर्ण है चंदन:-

वामन पुराण के अनुसार भगवान शिव की पूजा के लिए चंदन की लकड़ी को प्राथमिकता दी जाती है। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार चंदन की सुवासित लकड़ी में लक्ष्मी का वास होता है। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में श्रीराम के सुंदर भवन का वर्णन है जो चंदन से सुगंधित हो रहा है। भागवत पुराण के दशम स्कंध स्थित 42वें अध्याय में श्रीकृष्ण के शरीर के ऊपरी हिस्से को चंदन के लेप से सुवासित बताया गया है।

विश्वग्रंथ ब्रिटेनिका (Britanicca) में भारतीय संदर्भ में चंदन की लंबी जानकारी और कहा गया है कि ब्राह्मण जाति द्वारा माथे पर तिलक के रूप में इसका लेप और कपड़ों को सुगंधित करने के लिए चंदन के पाउडर का उपयोग किया जाता है। एक अन्य विदेशी ग्रंथ में कहा गया है कि हिंदू भक्त प्रतिदिन पांच प्रसाद के साथ देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा करते हैं, जिसमें सुगंधित (चंदन) पदार्थों से मूर्ति का अभिषेक करना, धूप (धूप) लहराना, पुष्प फूलों की माला, दीप जलाना और नैवेद्य अर्पित करना शामिल है। बौद्ध धर्म में भी अभ्यास के दौरान चंदन को विशेष बताया गया है।

कालिदास, कौटिल्य ने चंदन का किया जिक्र:-

धार्मिक कृत्य के रूप में पीले चंदन का प्रयोग आमतौर पर वैष्णव मत को मानने वाले और रक्त चंदन का प्रयोग शैव और शाक्त मत को मानने वाले अधिक करते हैं। हिंदुओं की चिता में चंदन का उपयोग करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। कालिदास ने अपनी संस्कृत रचना रघुवंश में इक्ष्वाकु रानी इंदुमती की चिता में चंदन के प्रयोग का उल्लेख किया है। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में विभिन्न स्थानों से चंदन की कई किस्मों का उल्लेख किया है, जिनमें लाल, काला-लाल, सफेद-लाल, काला, हरा और केसरिया जैसे विभिन्न रंगों का चंदन शामिल है। आज भी हवन आदि में चंदन का उपयोग खूब होता है। सामाजिक समारोह में चंदन का टीका लगाना आज भी प्रचलन में है।

कई देश इस पर मोहित:-

वैश्विक परिदृश्य से देखें तो चीन, जापान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात व कुछ पश्चिम देशों में चंदन की लकड़ी की बहुत मांग है। अंग्रेजी अखबार चाइना डेली के अनुसार चीन में तो चौदहवी से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य तक राज करने वाले मिंग वंश के समय का फर्नीचर लाल चंदन से बना हुआ है। जापान में भी विवाह के वक्त लाल चंदन से निर्मित वाद्ययंत्र शामिसेन देने की परंपरा रही है। प्राचीन मिस्रवासी चंदन की लकड़ी का आयात कर इसका उपयोग औषधि, देवताओं की पूजा के अलावा मृतकों के शव को जलाने के लिए करते थे। पारसी मंदिरों में शांति के लिए इसकी लकड़ी को प्रज्ज्वलित किया जाता है।

चंदन में है शीतलता का गुण:-

चंदन अति प्राचीन वृक्ष है। इसका संस्कृत और चीनी पांडुलिपियों में उल्लेख होने का 4,000 वर्ष पुराना इतिहास है। प्राचीन मिश्र व अन्य सभ्यताओं द्वारा चंदन का 3,000 से अधिक वर्षों से उपयोग करने का प्रमाण भी है। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में चंदन को बेहद शीतल बताया गया है। इसे त्वचा के लिए लाभकारी तो बताया ही गया है, कई औषधियों में इसके सेवन का वर्णन है। जाने-माने योगगुरु व आयुर्वेदाचार्य गुरु आचार्य बालकृष्ण के अनुसार चंदन फायदेमंद जड़ी-बूटी है, और इसका प्रयोग बहुत सालों से चिकित्सा के लिए किया जा रहा है। यह कई बीमारियों में भी लाभकारी है। इसमें धार्मिक, आध्यात्मिक, शारीरिक व मानसिक शांति के गुण पाए जाते हैं। चंदन से अवसाद, चिंता और अनिद्रा में सुधार होता है। यह शोक हरता है और मस्तिष्क को दुरुस्त रखता है। यह सिरदर्द में रामबाण है।

चंदन के तेल में ‘एंटी कैंसर गुण’:-

नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी (NCBI) की नेशनल लाइब्रेरी मेडिसिन (NLM) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक स्टडी ‘चंदन की फिर से खोज: सुंदरता और सुगंध से परे’ के अनुसार चंदन के तेल में एंटी कैंसर गुण पाए जाते हैं। इसके साथ ही चंदन के पेड़ से निकाले जाने वाले यौगिक अल्फा सैंटालोल (α-santalol) में एंटीकैंसर और कीमो-प्रिवेंटिव गुण की बात सामने आई है। चंदन का तेल नॉन टॉक्सिक भी है, जिस कारण इसका उपयोग सुरक्षित हो जाता है।

स्टडी के अनुसार चंदन का तेल सोरायसिस और एटॉपिक डर्मेटाइटिस के लिए भी लाभकारी है। इसमें एंटीपायरेटिक गुण मौजूद होता है, जो बुखार को कम करता है। इसका तेल मस्से हटाने में भी मदद करता है। चंदन में मौजूद एंटीइन्फ्लेमेटरी गुण (सूजनरोधी) न सिर्फ ठंडक प्रदान करते हैं बल्कि सूजन भी कम करते हैं। इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण भी हैं, जो कील-मुंहासों पर असरदारी हैं।

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