पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि वेद स्वयं प्रगट हुए हैं। वेद अनादि एवं अपौरूषेय हैं। अपौरूषेय अर्थात् किसी ने लिखा नहीं है। वेद भगवान् की श्वांस प्रश्वांस है। किसी के विषय में ये कह सकते हैं कि जब एक वर्ष के हो गये तब चलना सीखा, दो वर्ष के हुए तब दाँत आये, पाँच वर्ष के हो गये तब पढ़ना शुरू किया, 25 वर्ष के हुए तब विवाह हुआ, लेकिन क्या कोई बता सकता है कि स्वांस कब से ले रहे हैं,
तो कहना होगा स्वांस शुरू से ले रहे हैं अर्थात् जबसे हम हैं तबसे स्वांस है। वेद भगवान की स्वांस प्रस्वांस है। जबसे भगवान् है तबसे वेद हैं। जाकी सहज स्वांस श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी।। वेद भगवान की वाणी है।
पहले शब्द आया फिर सृष्टि हुई ।पितामह ब्रह्मा को भगवान नारायण ने सृष्टि के प्रारम्भ में वेद का ज्ञान प्रदान किया और वेद के आधार पर सृष्टि करने का आदेश दिया। वज्रधारी पुरन्दरः, इन्द्र वज्रधारी हैं, तो ऐसे इन्द्र को उत्पन्न किया।सारी सृष्टि वेद के आधार पर हुई है।
वेद सनातन धर्म का मूल है। सनातन का अर्थ होता है- नित्य नूतन इति सनातन। आज के कुछ वर्ष पहले की बात है दुनियां के समस्त शिक्षा विदों ने ये चिन्तन प्रारम्भ किया कि सबसे प्रचीन ग्रन्थ कौन सा है। भारी चिन्तन के बाद यही निर्णय हुआ कि ॠगवेद् से प्रचीन कोई ग्रन्थ नहीं है।
भगवान वेद धर्म के रक्षक हैं। दुनियां में वैदिक धर्म ही धर्म है, ये समझना चाहिए, क्योंकि वेद अनादि हैं। वेद स्वयं प्रगट हुये हैं। जब दुनियां में कोई धर्म नहीं था तब सनातन धर्म था और तब वेद धर्म के उद्घोषक हैं। वेदो खिलोधर्म मूलम्।
दुनियां के समस्त धर्मों का मूल है वेद ।वेद धर्म रक्षक है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।