पुष्कर/राजस्थान। जल हमारे जीवन के लिये अति आवश्यक है। जल ही जीवन है। जल ही प्राण है। जल के तीन रूप हैं- बर्फ, पानी, वाष्प। भगवान शंकर में तीनों रूप दिखाई पड़ता है। बर्फ- भगवान शंकर कैलाश पर विराजते हैं वहां बर्फ बहुत है। जलरूप- जल उनके मस्तक से निरंतर प्रवाहित होता है, भगवती भागीरथी श्री गंगा जी के रूप में। वाष्प-जब भगवान शंकर क्रोध करते हैं तो- समुद्र, नदी, सरोवर, ताल, तलैया का जल उबलने लगता है। वाष्प वना, आवश्यकता पड़ने पर बरसात होती है। जिससे बाग, बगीचे में हरियाली होती है। भगवान शंकर के दो नेत्र सूर्य और चंद्र के समान हैं एक गर्म करने वाला दूसरा धरती को बरसात कराकर शीतल करने का काम करता है। संसार में मनुष्य भी तीन प्रकार के हैं। एक वर्फ जैसे जो पिंधले नहीं ज्ञान, भक्ति, वैराग्य किसी से।जैसे आये वैसे चले गये। दूसरे जल की तरह- जल का स्वभाव नीचे गिरना है। वह ज्ञान- ध्यान से पिघले तो जरूर, लेकिन- काम, क्रोध में नीचे ही गिरते रहे। तीसरे जो तमाम प्रकार का तप करके शक्ति अर्जित करते हैं और दूसरे का भी मंगल करते हैं।
सागर से उठा बादल बनकर, बादल से गिरा बर्षा बनकर, फिर नहर बनी नदिया गहरी, तेरे भिन्न प्रकार तू एक ही है। हर देश में तू, हर वेष देश में तू, तेरे रूप अनेक तू एक ही है।। उद्यमी, उद्योगी, तपस्वी, परिश्रमी बनो। एक बार नवग्रह बहुत दुःखी थे। किसी ने पूछा क्यों दुखी हो?तो बोले- ग्रह, राकेट, तमाम उपग्रह हमको फाड़ कर निकल रहे हैं। चंद्रमा तो बहुत उदास थे, हम पर तो लोग आ गये। मंगलग्रह कहने लगा हमारे ऊपर भी। बृहस्पति ने कहा नजदीक होने के कारण सूक्ष्मदर्शी का निशाना हमारे ऊपर है। जो उद्यमी हैं उनसे ग्रह भी डरते हैं। जिसमें वह दम नहीं है वे ग्रह दिखाते फिरते हैं। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल की कथा में कोटिरुद्र संहिता की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।