Bhagavan Jagannath Rath Yatra: हर वर्ष ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ की अद्भुत शोभायात्रा निकाली जाती है. इस यात्रा में शामिल होने देश-विदेश से लोग पुरी पहुंचते हैं. कहा जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने मात्र से ही 100 यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है. इस यात्रा के दौरान रथ खींचने में लगे लोगों के अलावा यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं की भी पूरी कोशिश होती है कि वो भगवान जगन्नाथ के रथ को छू सकें और आशीर्वाद ले सकें.
लेकिन क्या आप जानते है कि भगवान जगन्नाथ की यह भव्य यात्रा एक मजार के सामने आकर कुछ देर के लिए रुक जाती है? बता दें कि यह भगवान जगन्नाथ के भक्त और उसकी श्रद्धा की एक अनूठी कहानी है, जिसके बारे में आप भी जानेंगे तो उस भक्त की भक्ति को सलाम करेंगे.

सालबेग की मजार पर होता पहला विराम
आपको बता दें कि यह कहानी है भगवान जगन्नाथ और उसके भक्त सालबेग की. दरअसल, हर साल भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ शहर के भ्रमण पर निकलते और अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर में जाते है. जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा देवी मंदिर जाने वाली इस रथयात्रा का पहला विराम सालबेग की मजार पर होता है. बता दें कि सालबेग की भक्ति का ही नतीजा है कि भगवान सालबेग को न किवल आशीर्वाद दिया बल्कि हमेशा के लिए अमर कर दिया.
Bhagavan Jagannath: कौन थे सालबेग
कहा जाता है कि सालबेग के पिता मुस्लिम थे और माता हिंदू थीं. सालबेग मुगल सेना के एक वीर सिपाही थे. उस समय एक युद्ध के दौरान सालबेग के सिर पर ऐसी चोट लगी जो ठीक ही नहीं हो रही थी. जिसके चलते सालबेग को सेना से निकाल दिया गया, इसके बाद वह तनाव में रहने लगे. ऐसे में ही सालबेग की मां ने उन्हें भगवान जगन्नाथ की शरण में जाने की सलाह दी.

मंदिर में नहीं करने दिया गया प्रवेश
मां से सलाह मिलने के बाद सालबेग भगवान जगन्नाथ का ध्यान करने लगे. एक दिन भगवान जगन्नाथ सालबेग की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने सालबेग के सपने में आकर उनकी चोट ठीक कर दी. जब सालबेग सुबह उठे और अपनी चोट ठीक पाई तो वह भागे-भागे जगन्नाथ मंदिर पहुंचे. लेकिन उनके पिता के मुस्लिम होने के कारण उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया. उसी समय सालबेग ने कहा कि यदि वह असली भक्त हुए तो भगवान खुद उन्हें दर्शन देने आएंगे. और इसी हठ के साथ सालबेग अपने अंतिम समय तक भगवान की पूजा-अर्चना करते रहे लेकिन जगन्नाथ मंदिर में उन्हें कभी दर्शन नही मिला.
अपने-आप रुक गया भगवान जगन्नाथ का रथ
वहीं, जिस साल सालबेग की मौत हुई उस साल जब रथयात्रा निकली तो भगवान जगन्नाथ का रथ सालबेग की मजार के सामने आते ही अपने-आप रुक गया. बहुत कोशिशें करने के बाउजूद भी रथ वहां से नहीं हिला. फिर अचानक किसी को सालबेग की याद आई, जिसके बाद रथ यात्रा में शामिल लोगों ने सालबेग के नाम का जयकारा लगाया, जिससे रथ आगे बढ़ गया और तभी से यह परंपरा शुरू हो गई. अब हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है, तो सालबेग के मजार के सामने जरूर रुकती है.
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