Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भोग और संग्रह की रुचि रखने वाला व्यक्ति साधक नहीं हो सकता बाधक है- परमात्मा की प्राप्ति सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति की तरह नहीं है. संसार का निर्माण होता है, पर परमात्मा का अन्वेषण होता है. संसार स्वतः अप्राप्त है, परमात्मा स्वतः प्राप्त हैं. संसार आज तक किसी की पकड़ में नहीं आया और न आ सकता है. परमात्मा की प्राप्ति का उपाय है- उत्कट अभिलाषा. परमात्मा की प्राप्ति के सिवाय दूसरी कोई इच्छा न रहे. परमात्मा की प्राप्ति में केवल चाह की ही प्रधानता है. वह चाह सत्संग, नाम जप, प्रार्थना आदि किसी भी कारण से अचानक जागृत हो सकती है.
सुख भोग और संग्रह की रुचि जिसमें है, वह परमात्मा की प्राप्ति तो दूर रही, परमात्मा की प्राप्ति का निश्चय भी नहीं कर सकता. भोग और संग्रह उतना बाधक नहीं है जितना उसकी रुचि बाधक है. भोग और संग्रह की रुचि रखने वाला व्यक्ति साधक नहीं हो सकता. आज तक बड़े से बड़े तथा छोटे से छोटे कार्य करने वाले अनेक संत हो गये.
संग्रह की रुचि महान पतन करने वाली है. धन के संग्रह की रुचि वाला व्यक्ति धन का भोग भी नहीं कर सकता और उसका सदुपयोग भी नहीं कर सकता. सदुपयोग वही कर सकता है जिसमें संग्रह की रुचि नहीं है. धन नहीं बांधता उसका मोह बांधता है.सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).