माँ भगवती की आराधना करने से सफल होता है सभी कार्य: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि रोगा न शेषा नपहंसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान् सकलान् भीष्टा। यदि भगवती प्रसन्न हो जाय तो रोग आदि नहीं रह जाते हैं। यदि माँ रुष्ट हो जाय तो घर के सारे सुख छीन भी लेती है। भगवती के दो रूप हैं। एक दया, कृपा, सुख, क्षमा और संपत्ति है। दूसरी ओर रोग, अशांति, मूर्खता। समय के दो रूप हैं, दिन और रात। अगर हम भगवती के समीप हो गये तो प्रकाश ही प्रकाश है और अगर उनसे दूर हो गये, विमुख हो गये, तो अंधकार ही अंधकार है। मां भगवती की महिमा सुनने मात्र से ही भक्तों के हृदय में भक्ति और शक्ति का संचार होता है और दुःख, दारिद्र्य रोग और शोक भी मिटते हैं। इलेक्ट्रिक इंजन आज ट्रेन को लेकर जा रहा है। शक्ति जहां है, वह परांबा का रूप है, जैसे धन लक्ष्मी का रूप है। ब्रह्मा में सृजन, विष्णु में पालन, शिव में संहार की शक्ति भी माँ भगवती की है। भगवान कार्तिकेय श्री मार्कंडेय महापुराण में पराम्बा की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि- माँ भगवती की संपूर्ण महिमा का वर्णन कौन कर सकता है। वो अनादि और अनंत हैं। वे सच्चिदानंद स्वरूपा हैं।वे जगत व्यापिनी हैं, उनके द्वारा ही सब कुछ हो रहा है। उनके द्वारा जो विशिष्ट कार्य हो रहे हैं वे संसार में हम आपको दिखाई पड़ रहे हैं। अगर कोई संसार में कुछ विशिष्ट कार्य कर पा रहा है तो इसके पीछे मां जगदंबा की कृपा ही समझना चाहिए। भगवती की कृपा से व्यक्ति शक्ति संपन्न हो जाता है और भगवती से दूर होने से शक्तिहीन हो जाता है और शक्तहीन व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता। इसलिए भगवती की आराधना, उपासना, श्रवण, ध्यान करते रहना चाहिए। हम किसी देवता की उपासना करते हैं तो उसके साथ शक्ति की उपासना भी हम करते हैं। भगवान श्री राम के संग भगवती सीता शक्ति के रूप में विराजमान हैं। श्री कृष्ण की आराधना करने में भगवती श्री राधा के रूप में विराजमान है। नारायण की उपासना हम करते हैं तो वहां भगवती लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं। ऐसे भगवती के अनंत रूप है। किसी भी स्वरूप का ध्यान, पूजन करने से व्यक्ति शक्ति संपन्न होता है और अपने हर कार्य में सफल होता है, छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम-वात्सल्य धाम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में ‘श्री श्रीं दिव्य मुरारी बापू जी के मुखारविंद से दिव्य चातुर्मास महा महोत्सव’ के अंतर्गत श्री मार्कंडेय महापुराण की द्वितीय दिवस कथा में भगवती की महिमा का गान किया गया।

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