नई दिल्ली। इस समय चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध से बदली हुई वैश्विक आर्थिक गतिविधियों और देश में महंगाई के बढ़ते दबाव को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को अचानक रेपो रेट और नकद जमा अनुपात (सीआरआर) में बढो़तरी कर बैंक कर्ज को महंगा कर दिया।
इसका सीधा प्रभाव उन लोगों पर पड़ेगा, जिन्होंने बैंकों से कर्ज लिया है अथवा कर्ज लेने का विचार रखते हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास (Reserve Bank Governor Shaktikanta Das) ने एक बयान जारी कर रेपो रेट में 0.40 प्रतिशत और सीआरआर में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि कर उसे क्रमशः 4.40 प्रतिशत और 4.50 प्रतिशत के स्तर पर पहुंचा दिया।
रिजर्व बैंक ने यह बड़ा निर्णय मौद्रिक नीति समीक्षा अर्थात् एमपीसी की जून में होने वाली बैठक से पहले ही किया है। परम्परागत घोषणाओं से अलग रिजर्व बैंक के गवर्नर का यह बयान काफी अहम माना जायगा, क्योंकि उदार रुख को छोड़ते हुए यह कदम उठाया गया है। गवर्नर का यह भी कहना है कि भू-राजनीतिक तनाव के कारण मुद्रास्फीति बढ़ रही है।
नीतिगत दरों में वृद्धि का उद्देश्य मध्यम अवधि में आर्थिक वृद्धि सम्भावनाओं को मजबूत और सुदृढ़ करना है। आने वाले समय में हर क्षेत्र में महंगाई में बढ़ोतरी की संभावना है। खास बात यह है कि पिछले दो वर्षों से रिजर्व बैंक ने उदार नीति बरकरार रखी थी। अप्रैल 2022 तक इसके पहले की मौद्रिक नीति समिति की पिछली 11 बैठकों में नीतिगत दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया था।
पिछले माह की शुरुआत में भी रेपो रेट को चार प्रतिशत और रिवर्स रेपोरेटको 3.25 प्रतिशत पर ही बरकरार रखा गया था। पौने चार साल बाद नीतिगत दरों में बढ़ोतरी की गयी है। अगस्त 2018 में नीतिगत दरें बढ़ायी गयी थी। ऐसा अनुमान है कि रिजर्व बैंक जून में भी बेंचमार्क रेट में वृद्धि कर सकती है। नीतिगत दरों में वृद्धि का प्रभाव ईएमआई पर पड़ेगा जिससे बैंक से कर्ज लेने वालों पर बोझ बढ़ेगा।