नई दिल्ली। वैज्ञानिकों की ओर से किया जा रहा एक दावा काफी आश्चर्य बढ़ाने वाले है। उनका कहना है कि चंद्रमा ग्रह अरबों वर्षों से पृथ्वी के पानी की चोरी कर रहा है। चंद्रमा पर इस समय पानी के मालिक्यूल और बर्फ मौजूद हैं। कुछ समय पहले भी चंद्रमा पर पानी की मात्रा पाए जाने का भी दावा किया गया था।
अब इस बात पर एक बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि चंद्रमा पर आखिर पानी आया कहां से? हमारे ग्रह के ऊपरी वायुमंडल से निकलने वाले आक्सीजन और हाइड्रोजन के आयन ने चंद्रमा की सतह पर 3500 घन किलोमीटर स्थायी तुषार भूमि या सतह के नीचे तरल जल को उत्पन्न किया होगा। इससे जुड़े वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी के चुंबक मंडल की पूंछ से चंद्रमा के गुजरने के समय हाइड्रोजन और आक्सीजन के आयन चंद्रमा की सतह पर पहुंच गए होंगे। हर चंद्र माह में पांच बार ऐसा होता है।
चुंबकमंडल आंसू के आकार का बुलबुला है, जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से नियंत्रित होता है। यह चुंबकीय बुलबुला सौर पवन या सूरज के आवेशित कणों से पृथ्वी के वायुमंडल की रक्षा करता है। इस बुलबुले पर सौर पवन का दबाव पड़ने से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की कुछ लाइनें टूट जाती हैं। वे सिर्फ ग्रह के एक ही छोर से जुड़ी रहती हैं। जब चंद्रमा पृथ्वी के चुंबकमंडल की पूंछ में हस्तक्षेप करता है, उस समय कुछ टूटी हुई लाइनें जुड़ जाती हैं। इससे पृथ्वी से निकलने वाले आक्सीजन और हाइड्रोजन के आयन चंद्रमा की तरफ अग्रसर होने लगते हैं। चंद्रमा का कोई चुंबकमंडल नहीं है। अत: जैसे ही चंद्रमा की सतह पर आयन पहुंचते हैं, स्थायी तुषार भूमि बनने लगती है। कुछ बर्फ विभिन्न भौगोलिक प्रक्रियाओं के जरिये सतह से नीचे पहुंचकर तरल जल में परिवर्तित हो गई होगी।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अरबों वर्ष की अवधि में हाइड्रोजन और आक्सीजन के आयन का जमाव धीरे-धीरे होता रहा। यह खगोलीय पिंडों की भारी बमबारी के बाद की अवधि है। बमबारी के दौर में प्रारंभिक पृथ्वी और चंद्रमा को अंतरिक्ष से आने वाले पिंडों के जबरदस्त प्रहार झेलने पड़े थे। अध्ययन दल ने चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों और प्रमुख क्रेटरों की बारीकी से पड़ताल के लिए नासा के लूनर रिकानेसेंस आर्बिटर के आंकड़ों का प्रयोग किया। दल को वहां चट्टानों में ऐसी दरारों का पता चला जहां बर्फ जमा हो सकती है। प्रहारों से क्रेटर बनने के बाद उभरने वाली संरचनाओं और दरारों में समुचित मात्र में तरल जल के जमा रहने की गुंजाइश रहती है। पिछले 3.5 अरब वर्षों में हजारों घन किलोमीटर पानी चंद्रमा की सतह के नीचे जमा हो चुका होगा। नासा चंद्रमा पर एक दीर्घकालीन मानव उपस्थिति चाहता है, लेकिन इसके लिए एक उपयुक्त अड्डा और निकटवर्ती जल स्नेत जरूरी है। नए शोध से विशेषज्ञों को अड्डे की जगह तय करने में मदद मिलेगी। पृथ्वी से चंद्रमा पर पहुंचा पानी अंतरिक्ष यात्रियों की जीवन रक्षा प्रणालियों में काम आएगा। अगर चंद्रमा पर पानी की उपलब्धता होने लगी तो जल्दी ही वहां मानव की उपस्थिति हो सकती है।