राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत दिव्य मोरारी बापू ने श्री गुरु पूर्णिमा महामहोत्सव के पावन अवसर पर श्री रामायण ज्ञानयज्ञ कथा में तृतीय-दिवस पर श्री शिव चरित्र- त्रेतायुग की कथा का वर्णन किया। उन्होने कहा कि एकबार श्रीशंकरजी श्रीसतीजी को साथ में लेकर महर्षि अगस्त्य के पास गये। वहां बहुत सुंदर सत्संग हुआ।
श्रीरामकथा के मर्मज्ञ महर्षि अगस्त्य ने श्रीरामकथा का वर्णन किया और भक्तिरस मर्मज्ञ श्रीशंकरजी ने श्रीरामभक्ति का निरूपण किया। कुछ दिन अगस्त्याश्रम में सत्संग करके, उनसे विदा माँग करके श्रीसती के साथ भगवान श्रीशंकरजी ने प्रस्थान किया। उसी समय पूर्णब्रह्म परमात्मा ने रघुवंश में अवतार लिया था। वे अविनाशी, उदासी वेष धारण करके दंडकारण्य में परिभ्रमण कर रहे थे। भगवान श्रीराम का दर्शन करके- भगवान शिव को आनंद की प्राप्ति हुई। सतीमोह, दक्षयज्ञ, मां पार्वती का प्राकट्य, तप और शिवविवाह की कथा का गान किया गया।