ISRO: चंद्रमा के बाद अब सूर्य पर पहुंचने की तैयारी, जल्द लॉन्च होगा ‘आदित्य एल-1’

Isro Sun mission: भीमकॉय रॉकेट चंद्रयान-3 (मिशन मून) 14 जुलाई को लॉन्च करने के बाद अब भारतीय अंतरिक्ष रिसर्च सस्‍थान का ISRO का फोकस सूर्य मिशन पर है। आपको बता दें इसरो ने 14 जुलाई दिन शुक्रवार दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च किया। जो आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से LVM3-M4 रॉकेट के जरिए चंद्रयान को स्पेस में भेजा गया। यदि सब कुछ सही रहा तो चंद्रयान-3 23 या 24 अगस्त तक चंद्रमा की सतह पर पहुंच जाएगा।

ऐसे में बताया जा रहा है कि चंद्रयान-3 के चंद्रमा की सतह पर पहुंचने के दो तीन दिन बाद ISRO सूर्य मिशन लॉन्च करने पर विचार कर रहा है। उम्‍मीद है कि भारत का पहला सूर्य मिशन आदित्य एल-1(Aditya L1) 26 अगस्त को लॉन्च किया जाएगा।

इसरो देश के पहले सूर्य मिशन आदित्य एल-1 की लॉन्चिंग के लिए तैयार है। सूर्य की निगरानी के लिए भेजे जा रहे इस उपग्रह के सभी पेलोड (उपकरणों) का परीक्षण पूरा कर लिया गया है। जल्द ही इसका आखिरी रिव्यू किया जाएगा। इसरो चेयरमैन एस. सोमनाथ ने बताया कि आदित्य एल-1 से सोलर कोरोनल इजेक्शन का एनालिसिस किया जाएगा।

ISRO चीफ सोमनाथ एस ने गुरुवार को कहा कि ‘सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य-एल1 मिशन की तैयारी चल रही है, इसके साथ ही एक्स्ट्रासोलर ग्रहों का अध्ययन करने के लिए एक उपग्रह बनाने पर भी चर्चा चल रही है।’ आदित्य सूर्य-पृथ्वी प्रणाली प्रभामंडल कक्षा के लैग्रेंज प्वाइंट-1  के आसपास से गुजरेगा। इसकी पृथ्वी से दूरी 15 लाख किमी है। इस स्थिति से यह यान सूर्य को अच्छे से देख सकेगा। इस यान के माध्‍यम से सूर्य की विभिन्न प्रक्रियाओं को देखा जा सकेगा। जिससे यह पता चल सकेगा कि सूर्य की गतिविधियों का अंतरिक्ष के मौसम पर कैसे प्रभाव पड़ता है।

‘आदित्य एल-1’ को पीएसएलवी (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) द्वारा अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा। जिसको अपनी मंजिल तक पहुंचने में इसे कम से कम 4 महीने का समय लगने की संभावना जताई जा रही है।

आदित्य एल-1 से जुड़़ी कुछ खास बातें

  • आदित्य एल-1 LMV M-3 रॉकेट से जाएगा। अंडाकार कक्षा में बढ़ेगा।
  • 15 लाख किमी दूर L-1 के समीप होलो ऑर्बिट में तैनाती। यहां से सूर्य हर वक्त दिखेगा।

आदित्य एल-1 के उपकरण होंगे
आदित्य एल-1 में कुल सात उपकरण (VELC, सूट, ASPEX, पापा, सोलेक्स, हेल10एस और मैग्नेटोमीटर) होंगे, जिनमें चार सीधे सूर्य से पृथ्वी तक आने वाले ऊर्जित कणों का एनालिसिस करेंगे और पता लगाएंगे कि आखिर ये कण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में किस तरह फंस जाते हैं? सूर्य के किनारों पर किस तरह कोरोनल इजेक्शन हो रहा है और उसकी तीव्रता क्या है? इससे सूर्य की गतिविधियों के बारे में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता विकसित हो सकती है।

अब तक दुनियाभर से भेजे गए 22 सौर मिशन
आपको बता दें कि सूर्य को जानने के लिए दुनियाभर से अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने कुल मिलाकर 22 मिशन भेजे हैं। सबसे ज्यादा मिशन अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने भेजे हैं। नासा ने पहला सूर्य मिशन पायोनियर-5 साल 1960 में भेजा था। जर्मनी ने अपना पहला सूर्य मिशन 1974 में नासा के साथ मिलकर भेजा था। यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने आअपना पहला मिशन नासा के साथ मिलकर 1994 में भेजा था।

 

 

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