science news- दुनिया भर में आने वाले प्राकृतिक आपदाओं को लेकर सभी वैज्ञानिकों की तरफ से चेतावनी दी जा रही है। उन्होंने बताया है कि भारत के भूगर्भीय भविष्य को लेकर गंभीर चिंता जारी किया है। भूवैज्ञानिकों की तरफ से चिंता का संदेह दिया जा रहा है कि भारतीय प्लेट दो भागों में बंट रही है। इसके दौरान बताया गया है कि इलाके के भूवैज्ञानिक स्थिति को लेकर हमेशा के लिए एक नया आकार दे सकती है। यहीं अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन में एक लेख प्रकाशित किया जा रहा है, और बताया गया कि इस अहम खोज के बारे में जानकारी दी गई है।
कि इस भूभाग में प्लेटें अलग होती दिखाई दे रही है और पृथ्वी के मेंटल परत में समा रही है। वैज्ञानिकों के अध्ययन के मुताबिक रिपोर्ट में बताया गया कि भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले भूकंप और खतरों के बारे में कई सारी आवश्यक जानकारियां दी गई हैं। इसके दौरान अध्ययन के मुताबिक, जिस भारतीय प्लेट की करीब 60 मिलियन सालों से यूरेशियन प्लेट से टक्कर हो रही है, अब वो एक नई प्रक्रिया के आकार लेकर गुजर रही है। इसे डेलैमिनेशन कहा जाता है।
इसके दौरान प्लेट का घना निचला पृष्ठ पृथ्वी के मेंटल भाग में समा रहा है। जिससे प्लेट के अंदर एक लम्बी दरार बन रही है। वैज्ञानिकों के कहना है कि तिब्बत के झरनों में भूकंप की लहरों और हीलियम समस्थानिकों का विश्लेषण किया, इसके दौरान बाद में इस घटना की जानकारी मिली। इससे प्लेट में एक ऊर्ध्वाधर दरार के बारे में बताया जा रहा है।
भूगर्भशास्त्री डौवे वैन हिंसबर्गेन ने बताया कि
यूट्रेक्ट यूनिवर्सिटी के भूगर्भशास्त्री डौवे वैन हिंसबर्गेन ने बताया कि हम इस बारे में नहीं जानते थे कि महाद्वीप ऐसे व्यवहार कर सकते हैं। यह बहुत ही ठोस पृथ्वी विज्ञान के लिए अधिक मौलिक है। डेलैमिनेशन एक तरह की भूगर्भीय प्रक्रिया है। जिसमें टेक्टोनिक प्लेट का नीचे के भाग अलग हो जाता है और मेंटल परत में समाहित हो जाता है। इसके दौरान प्लेट की स्थिरता अधिक प्रभावित हो सकती है। हालांकि क्षेत्र में भूकंप की संभावना बढ़ सकती है।
बढ़ रही भूकम्प की सम्भावना
वैज्ञानिकों के मानना है कि यह खोज इसलिए की गई है, क्योंकि वो यह बताती है कि न सिर्फ प्लेट की सतह की मोटाई अलग-अलग हैं, बल्कि टेक्टोनिक शिफ्ट को ऑपरेट करने वाली अंदरूनी प्रक्रियाएं पहले से जानकारी की तुलना में कहीं अधिक जल्दी से बदल रही हैं, जिसे समझना बहुत ही कठिन है।
वैज्ञानिकों के छानबीन के मुताबिक हिमालय क्षेत्र को पहले से ही भूकंपीय गतिविधियों के लिए जाना जाता है। डेलैमिनेशन की इस प्रक्रिया से इस इलाके में आंतरिक तनाव काफी हद तक बढ़ सकता है। जिससे अधिक तेज और बार-बार भूकंप आ सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना हैं कि इस प्रक्रिया से तिब्बती पठार में गहराई से दरारें बननें का संभावना अधिक हो सकती है। उनका कहना है कि अभी और शोध की आवश्यकता है, जिससे लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभावों को हम गहराईयों से समझ सकें।
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