गोरखपुर। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अमेरिका की कंपनी नोवा वैक्स इंक की कोविड वैक्सीन कोवा-वैक्स के ट्रायल के लिए केवल छह वालंटियर ही मिल सके। सभी वालंटियर युवा हैं। इनको कोवा-वैक्स की डोज दी गई है। अब एम्स इनके स्वास्थ्य की लगातार छह माह तक लगातार निगरानी करेगा। कोवा-वैक्स वैक्सीन का यह तीसरे फेज का ट्रायल है। इसमें 100 लोगों पर ट्रायल होना था। लेकिन ट्रायल के लिए केवल आठ दिन का समय होने के कारण वांलिटयर नहीं मिल सके। एम्स के साथ आरएमआरसी (रिजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर) भी ट्रायल में शामिल हैं। जानकारी के मुताबिक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और आईसीएमआर (इंडियन मेडिकल रिसर्च सेंटर) ने अमेरिका की नोवा वैक्स इंक की कोविड वैक्सीन कोवा-वैक्स के भारत में ट्रायल का फैसला लिया है। इसके लिए देश के 23 संस्थान चुने गए हैं। इनमें एम्स गोरखपुर और आरएमआरसी गोरखपुर भी है। कार्यक्रम की शुरुआत 30 जून से की गई और वालंटियर की तलाश के लिए आठ जुलाई तक का समय दिया गया। समय कम होने की वजह से केवल छह वालंटियर ही मिल पाए। इनकी उम्र 18 से 45 वर्ष के बीच है। बताया जा रहा है कि वैक्सीन की पहली डोज लगाने के 21 दिन बाद वांलटियरों को दूसरी डोज लगाई जाएगी। इस बीच छह माह तक एम्स प्रशासन वालंटियर के स्वास्थ्य पर नजर रखेगा। आरएमआरसी के सीनियर वैज्ञानिक डॉ. अशोक पांडेय ने बताया कि जो भी वालंटियर ट्रायल में शामिल है वह कभी कोरोना संक्रमित नहीं हुआ है। उसे कोई भी वैक्सीन नहीं लगाई गई है। ऐसे लोगों की संख्या बेहद कम है। इसकी वजह से कम वालंटियर मिले हैं।