धृतराष्ट्र के प्रश्न से गीता का होता है आरंभ: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि अन्ध धृतराष्ट्र के प्रश्न से गीता का आरंभ होता है। धृतराष्ट्र अंधे हैं, एक संकेत है इसमें, प्रश्न करने वाला अंधा ही होता है। प्रत्येक प्रश्न पूछने वाला अंधा होता है। इसका मतलब ही ये है कि- मैं नहीं जानता, आप मुझे समझाइये। मैं नहीं देख पा रहा हूं, आप दर्शन कराइये। प्रत्येक प्रश्न पूछने वाला अंधा होता है। तब संजय फिर शुरुआत करते हैं। ये बीच में जो रथ खड़ा है धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे, श्लोक इस प्रकार है- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। हमारे एक संत- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे, दोनों शब्दों को थोड़ा इधर-उधर करके कहते हैं-‘ क्षेत्रे क्षेत्रे धर्मं कुरु।’ अभिप्राय यह है जो भी क्षेत्र आपको मिला हो उसमें आप धर्म करो। धर्म का आचरण करो। ये क्षेत्र किसको कहते हैं? श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने समझाया है- ‘इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।’ यह जो शरीर है उसी को क्षेत्र कहते हैं। तो जो भी क्षेत्र आपको मिला हो, जो भी शरीर आपको मिला हो, उसमें क्या करो? धर्म करो। श्रीमद्भागवत महापुराण के माहात्म्य में गोकर्ण महाराज अपने पिता को उपदेश करते समय दो मंत्र कहते हैं, उसको ‘ गोकर्ण गीता ‘ के नाम से जाना जाता है।धर्मं भजस्व सततं त्यज लोकधर्मान्’ यह शरीर जो मिला है, वह धर्म करने के लिए मिला है। ये साधन है- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ‘ धर्म करने के लिए मिला हुआ ये साधन है, तो जो भी साधन के रूप में आपको शरीर प्राप्त हो जाय, वह इसलिए मिला है कि आप धर्म करो और धर्म क्या है परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई । परहित के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है। जितना हो सके, दूसरों का हित करो। कई लोग प्रश्न करते हैं, दूसरों के हित में ही लगे रहेंगे तो अपना हित कब करेंगे। जब हम दूसरों का हित करने की भावना करते हैं। जिस क्षण आपके मन में परहित की भावना पैदा हुई, उसी क्षण आपका हित हो गया। उस भावना ने आपका अपना हित कर लिया उसी वक्त। ये ऐसा ही है जैसे हम किसी का पूजन करने के लिए तैयार होते हैं, कि हमारा मंगल हुआ। हम उनका चंदन से टीका करें, उन्हें बंदन करें।उनको चंदन करने के लिए जब हम तैयार होते हैं, तो चंदन उनके ललाट से तो बाद में लगता है, हमारी अंगुली से पहले लगता है। चंदन की शीतलता का अनुभव सामने वाले का ललाट बाद में करता है, हमें तो वह अनुभव पहले ही हो जाता है। इसलिए जिस क्षण हमारे हृदय में दूसरों का हित करने की भावना जागृत होती है, उसी क्षण हमारा अपना हित हो गया और इस तरह से परहित वाला जो धर्म है, उसका आचरण करने वाला व्यक्ति, उसकी सद्गति निश्चित है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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