नई दिल्ली। चक्री फूल एक मसाला जिसे बादीआं या स्टार अनीस के नाम से पूरे विश्वभर में जाना जाता है, का देश में वाणिज्यिक उत्पादन के लिए क्षेत्र चयन, पर्यावरण चयन व भौगोलिक परिस्थितियों को इसके अनुसार देखते हुए देश के वाणिज्यिक कृषि बागवानी क्षेत्र में शोध करने वाले डॉ विक्रम शर्मा ने इस वाणिज्यिक मसाले पर अपना शोध पूर्ण कर लिया है। डॉ शर्मा ने बताया कि स्टार अनीस एक ऐसा मसाला है जिसे मात्र विदेश से मंगवा कर देश की खपत को पूरा किया जाता रहा है। बादीआं या चक्री फूल कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत भारत वर्ष में आयात करके प्रयोग होता है परन्तु इसका देश में उत्पादन बिल्कुल नगण्य के बराबर भी नहीं। बादीआं एक मसाला ही नहीं एक बेहतरीन औषधी भी है, जिसका प्रयोग मुख्यतः कई आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक व एलोपैथिक चिकित्सा पद्धतियों में किया जाता है। इस फल से कई सौंदर्य प्रसाधन भी बनाए जाते हैं। इस चक्री फूल के मसाले को भारतीय व्यंजनों के अलावा यूरोपीय व अन्य महाद्वीपीय क्षेत्र में भी प्रयोग में लाया जाता है। ये मसाला मुख्यतः चीन, वियतनाम व जापान में पाया जाता है, तथा चीन इसका व्यापार बहुत बड़े पैमाने पर करता है। स्टार अनीस के जंगली प्रजाति के कुछ पौधे हमारे अरुणाचल क्षेत्र में भी पाए जाते हैं, परन्तु आजतक इसका वाणिज्यिक उत्पादन देश में शुरू नहीं हो सका। अरुणाचल क्षेत्र में पाए जाने वाले बादीआं के पौधे अभी तक वाणिज्यिक स्वरूप नहीं ले सके जिसके कारण उनका उत्पादन देश की मंडियों तक नहीं पहुंच पाया। मात्र दावे जरूर किए गए कि अरुणाचल के अलावा इसके उत्पादन की संभावनाएं नहीं है जो सरासर गलत है। डॉ शर्मा ने बताया कि उन्होंने इसके शोध व प्रसार के लिए जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड व उतरी पूर्वी भारत के मध्य क्षेत्रों को उचित पाया जंहा इसका वाणिज्यिक उत्त्पादन किया जा सकता है, क्यंकि इन क्षेत्रों की जलवायु इसके लिए अत्यधिक उपयुक्त है, इसके अच्छे उत्पादन के लिए ठंड व थोड़ी गर्मी का होना दोनों अनिवार्य है, जो इन क्षेत्रों में बिल्कुल प्रमाणित है। इसके देश मे उत्पादन को बढ़ावा देकर आयात पर नियंत्रण करके, विदेशी पूंजी को देश हित में व अपने देश के युवाओं व किसानों को एक अत्याधुनिक आर्थिक स्वावलंबन से जोड़ा जा सकता है। डॉ विक्रम ने बताया कि उन्होंने एक एकीकृत कृषि बागवानी प्रोजेक्ट पर भी शोध कार्य करके उसका प्रारूप तैयार किया है, जिसके माध्यम से किसान बागवान को सालभर लगातार आय के साधन बने रहेंगे तथा मार्किट ढूढने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि उन्होंने उन्ही मसालों व मेवे फल फसलों को टारगेट किया है जो मात्र आयात से देश की मंडियों में आती हैं। डॉ शर्मा ने कहा कि उनका मिशन देश के पैसे को बचा कर देश के नोजवानों को कृषि बागवानी से रोजगार के द्वारा आत्मनिर्भर बनाने की तरफ अग्रसर करना है जिससे कृषि को आगामी पीढ़ी उधोग का स्वरूप मान कर कार्य कर सके। डॉ विक्रम ने एकीकृत कृषि बागवानी में स्टार अनीस, दालचीनी, अवोकेडो, पिस्ता व कॉफ़ी को शामिल किया है, जो अत्याधिक मांग की फसलें है तथा देश में आय के साधन बढ़ा सकती हैं। डॉ शर्मा ने बताया कि हींग का देश मे शोध उन्होंने 2015 में शुरू किया था जो आज एक मिशन के रूप में आगे बढ़ रहा है, जिसमे देश की अग्रणी शोध संस्था DRDO विशेष रूप से लेह स्थित शोध केंद्र पर हींग के लिए कार्यरत है तथा डॉ विक्रम की मदद ले रही है। डॉ विक्रम ने हिमाचल के मध्य क्षेत्र में कॉफ़ी का सफल प्रयोग 2001 में पूर्ण कर दिया था जिसपर हिमाचल सरकार से किसानों तक इसकी पौध व वाणिज्यिक उत्पादन के लिए सहायता प्रदान करने की उपेक्षा करते हैं, ताकि इसे वाणिज्यिक रूप में प्रदेश में उगा कर किसान अपने बंजर जमीन से आर्थिक लाभ उठा सकें। देश की सरकार से उन्होंने अनुरोध किया कि अगर कृषि उत्पाद बेचने वाली कंपनी उधोग श्रेणी में आ सकती है तो कृषि उत्पाद पैदा करने वाला किसान एक उधोगपति क्यों नहीं गिना जा सकता। उन्होंने कहा कि मेरा प्रधान मंत्री से अनुरोध है कि कृषि बागवानी क्षेत्र को उधोग का दर्जा दिया जाए ताकि बैंकिंग क्षेत्र से इस क्षेत्र को आसानी से लाभान्वित किया जा सके।