नई दिल्ली। इंटेलिजेंस कोर को छोड़कर गैर-सामान्य कैडर स्टाफ की रिक्तियों से लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पदोन्नति के लिए भारतीय सेना की 2017 की पदोन्नति नीति को चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर रक्षा मंत्रालय व अन्य से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति नवीन चावला ने रक्षा मंत्रालय के अलावा सेनाध्यक्ष और सैन्य सचिव के माध्यम से केंद्र से जवाब मांगा है। अदालत ने सभी पक्षों को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। यह याचिका मेजर जनरल एसएस खारा ने अधिवक्ता नीला गोखले, कुशाल चौधरी के जरिये दायर की है। याचिका में कहा गया है कि पदोन्नति नीति विशेष रूप से केवल सामान्य कैडर के अधिकारियों और सेना, इंजीनियरों, सिग, एएडी, एएससी और ईएमई की धाराओं से संबंधित गैर-सामान्य कैडर के अधिकारियों को पदोन्नति के लिए पात्र होने का अधिकार देती है। याचिका में कहा गया है कि इंटेलिजेंस कोर को बिना किसी उचित या तार्किक कारण के प्रतिवादियों की आक्षेपित नीति के तहत पदोन्नति के दायरे से मनमाने ढंग से बाहर रखा गया है। याचिका में कहा गया सेना एक एकजुट इकाई है जिसमें अपने संगठन के भीतर सभी अधिकारी शामिल हैं, जो एक साथ काम करते हैं। वे अन्योन्याश्रित रूप से बाहरी और आंतरिक खतरों से हमारे देश की रक्षा करने के कार्य का निर्वहन करते हैं। याचिका में कहा गया है नीति प्रकृति में भेदभावपूर्ण है और विशेष रूप से इंटेलिजेंस कोर को पदोन्नति के लिए पात्रता के दायरे से बहिष्कृत और अक्षम करती है। यह नीति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करती है। याचिका में पदोन्नति नीति को रद्द करने की मांग की गई है और एनजीसीएसएस रिक्तियों में पदोन्नति के लिए इंटेलिजेंस कोर को शामिल करने पर विचार करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।