नई दिल्ली। मेडिकल कोर्सेज में दाखिला लेने वाले विद्यार्थी अब हिंदी में भी पढ़ाई कर सकेंगे। मेडिकल की तीन किताबें जल्द पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेंगी। हिंदी भाषी क्षेत्र के मेधावी छात्र-छात्राओं की सहूलियत के लिए पहली बार उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान ने तीन किताबें प्रकाशित कराई हैं। पुस्तकों को प्रदेश के सभी विश्वविद्यालय की मेडिकल की पढ़ाई में शामिल करने के लिए हिंदी भाषा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. राजनारायण शुक्ला ने यूपी सरकार को प्रस्ताव भेजा है। भाषा संस्थान की पहल पर किताबें किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के शल्य चिकित्सा (सर्जरी) विभाग के पूर्व हेड डॉ. टीसी गोयल (उम्र 80) और उनके पुत्र डॉ. अपुल गोयल ने लिखी हैं। मेडिकल पाठ्यक्रमों में हिंदी भाषा की पुस्तकों की उपलब्धता न होने और विद्यार्थियों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए यूपी भाषा संस्थान ने पहल का आगे बढ़ाया। पिछले तीन साल से चल रही भाषा संस्थान की कवायद ने सितंबर 2020 में जाकर आकार लिया है। पहली दो किताबें आधुनिक शल्य विज्ञान (मॉडर्न सर्जरी) व शल्य विज्ञान की अधिविशिष्टिताएं भाग एक और दो प्रकाशित हुई है और तीसरी पुस्तक रोग निदान शामिल है। तीनों पुस्तकों में शल्य चिकित्सा की पूरी अवधारणा को समाहित किया गया है। मेडिकल के साथ ही भाषा संस्थान प्रबंधन विषय से जुड़ी हिंदी भाषा की पुस्तक पर काम कर रहा है। संस्थान की ओर से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो. राजीव सिजोरिया भारतीय प्रबंधन कला की पुस्तक लिख रहे हैं। संस्थान आने वाले दिनों में मेडिकल की अन्य हिंदी पुस्तकों के लेखन पर गंभीरता से काम कर रहा है। शासन स्तर से प्रस्ताव को जल्द मंजूरी मिलती है तो आगामी सत्र में तैयार तीनों पुस्तकों को मेडिकल पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है।