जीवन की बहुमूल्य ऊर्जा का संरक्षण ही है ब्रह्मचर्य: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ब्रह्म अपनी मर्यादा से कभी नहीं गिरता। जीवन की, तन की, बहुमूल्य ऊर्जा का संरक्षण ही ब्रह्मचर्य है। शरीर में सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और अंतिम धातु शुक्र है। जैसे बादाम के वृक्ष में पत्ते, फल, और पके बादामों का अपना महत्व है परंतु बादाम में से निकाला गया बादाम रोगन अंतिम शक्तिमान तत्व है, ठीक वैसे ही शुक्र धातु शरीर में, रक्त, मज्जा, रसों आदि विभिन्न तत्वों में शक्तिमान तत्व है। शास्त्रों ने इस तथ्य को स्वीकारते हुए कहा भी है, मरणं विन्दुपातेन जीवनं बिन्दुधारणात्।। बिंदु का संरक्षण महान् जीवन है परंतु बिंदु का पतन मृत्यु का आह्वान है। शुक्र सातवीं धातु है। इसकी सुरक्षा ही ब्रह्मचर्य है। जो इस उर्जा को विलकुल नष्टकर देते हैं, अधेड़पन, बुढ़ापे में शक्ति को क्षीण पाकर रोते और पछताते हैं। परंतु तब तक अमूल्य निधि नष्ट हो चुकी होती है। दूसरी तरफ नास्तिक अथवा भोगवादी, जीवन का अंतिम लक्ष्य संसार के सुखों को मानते हैं।कामत्यागस्तपस्मृतः। दूसरी ओर आस्तिक अथवा ईश्वरवादी, ब्रह्मचर्य को जीवन की और चार आश्रम रूप विशाल भवन की सुदृढ़ नींव मानते हैं। नींव की दृढ़ता आज सभी स्वीकार करते हैं।भगवान् महावीर, भगवान् बुद्ध, श्रीहनुमानजी, भगवान् परशुराम, भीष्म पितामह सरीखे महापुरुष ब्रह्मचर्य के बल पर मृत्यु पर विजय पाकर अमर हो गये। आधुनिक युग में तो अनेकों योगी, सन्यासी तथा भिक्षु ब्रह्मचर्य का पालन करके जीवन में परम आनंद पा रहे हैं। किसी ने सच ही कहा है कि जिसके त्याग में लोग आनंद का लाभ उठाते हैं उसका संरक्षण करने में परम आनंद की प्राप्ति क्यों नहीं होगी। ब्रह्मचारी तन,मन और आत्मा के सभी सुख व आनंद जीवन में ही ले लेता है। ब्रह्मचर्य शरीर की शक्ति के साथ बुद्धि की तीव्रता, स्मरणशक्ति में चमत्कारी वृद्धि, मन की एकाग्रता, इंद्रिय संयम आदि अलौकिक गुणों का मानव को स्वामी बना देता है। भगवान श्री कृष्ण ने काम को अपना अंश माना है। कामदेव ही प्रद्युम्न के रूप में भगवान् के पुत्र बने। धर्म के आधार पर काम कल्याणकारी है। पर जो सुख काम में है, उससे हजारों लाखों गुना आनंद राम में है। दुर्भाग्य से आज विश्व के साथ भारत में भी भोगबाद का बोलबाला है। अभद्र कहानियां, फिल्में, टी-वी- सीरियल आदि इस जलती आग में घी का कार्य कर रहे हैं।इतना ही नहीं भोगवादी पैसे को सबकुछ मानकर, येन केन प्रकारेण धन कमाने में लग जाते हैं। इनसे जगत का क्षय हो रहा है। नैतिकता रसातल की ओर जा रही है। भगवान् गीता के सोलहवें अध्याय के अंत में नरक के तीनों द्वारों में काम, क्रोध, लोभ की चर्चा करते हैं। सत्य हर युग में सत्य है। यद्यपि यह उत्तर कुछ अधिक विस्तृत हो गया है। परंतु इसके महत्व को जानना, मानना जरूरी है। यदि हमें लौकिक,अलौकिक सुखों की प्राप्ति करनी है तो स्वयं कुमार्ग से बचें। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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