पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री दिव्य धन्य है ब्रजरज जिसे खाने के लिये भगवान् स्वयं बछड़े बन गये और उनके प्रिय सखा उद्धव जी वृक्ष बनने के लिये तैयार हो गये। भगवान ने बाल लीला में ब्रजरज आस्वादन किये, जिसे मृद-भक्षण लीला कहते हैं। भगवान विचार करते हैं मेरे भक्तों का चरण जहां पड़ जाये वहां की मिट्टी भी अति पावन हो जाती है, अगर मैं ब्रजरज ग्रहण करूंगा तो मेरे भीतर निवास कर रहे अनंत ब्रह्मांड के जीवों का मंगल होगा। भगवान् ने इसकी युक्ति निकाली, श्री ब्रह्मा जी के मोह प्रसंग में समस्त बछड़ों का रूप प्रभु श्री कृष्ण ने लिया और एक वर्ष तक ब्रजरज का आस्वादन किया। ब्रजरज में भगवान के भी चरण की धूल है और भक्तों के भी चरणों की धूल है। इस संसार में दो ही स्मरण बंदन करने योग्य हैं। भगवान और भगवान के भक्त। श्री भक्तमाल जी में नाभा गोस्वामी जी ने लिखा है- संतन मिलि निर्णय कियो मथि श्रुति पुराण इतिहास। भजिवे को दो ही सुधर कै हरि कै हरि दास।। भगवान् भक्त बांझा कल्पतरु है आंखों से आंसू गिरे पर संसार के लिये गिरे, भगवान के लिये कभी नहीं गिरे और अब भगवान के लिये आंसू गिरे, जिस दिन नेत्रों में से आंसू गिरे हैं उन नेत्रों में ही श्याम की छठा आपको नजर आयेगी।
विश्वास करो वेद में एक मंत्र आता है। “श्रद्धत्व सुता श्रद्धत्व” वेद का ऋषि कहता है अरे मानव एक बार तू श्रद्धा तो प्रकट कर, विश्वास लेकर चल पड़, देख! तेरे जीवन में मंगल-ही-मंगल है। लेकिन यह जीव की कमजोरी है कि ईश्वर की ओर वह नहीं चल पाता। भगवान् भक्त बांछा कल्पतरू है। अन्य अवतारों में अनंत-अनंत भक्तों ने भगवान् को देखकर मन में ऐसी भावना जगाया कि कभी भगवान हमारे हो सकते हैं, कभी भगवान हमको बहुत समीप से मिल सकते हैं, भगवान का साक्षात्कार, सामीप्य और सानिध्य प्राप्त कर लेना ही जीवन की सफलता है। क्या हमारा जीवन भी सफल हो सकता है? उनके मन में इच्छा हुई और भगवान् ने कृष्णावतार में रासलीला के माध्यम से सबको बहुत सुलभ हो गये। भक्तों के हृदय में भगवदीय कामना उत्पन्न करने वाले भी परमात्मा हैं और उसे पूर्ण करने वाले भी परमात्मा ही है। और कौन पूर्ण कर सकता है? जीव और ब्रह्म के मिलन को रास कहते हैं। ध्यान, ज्ञान, भजन, सत्संग में जब कोई भक्त अतिशय तल्लीन हो जाता है, संसार की विस्मृति हो जाती है और केवल एक परमात्मा का सुमिरण रहता है तो लोग कहते हैं आज सत्संग में बहुत रस आया। जहां रस ही ढेर-ढेर हो रहा हो उसी को रास कहते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।