भावना से भक्त भगवान् का करता है ध्यान: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि ईश्वर का ईश्वरत्व विलक्षण है और उस पर विश्वास करना है, हमारे प्रभु सदा हमारे साथ हैं, हमारे पास हैं, अंग संग हैं, ऐसा अनुभव करते रहा करो। श्रीमद्भागवत में मंत्र है- द्रौपदी च परित्राता येन कौरव कश्मलात। जिन्होंने कौरवों की सभा में द्रौपदी की रक्षा किया, जिन्होंने ब्रज वासियों का पालन किया है, सात कोस का पहाड़ सात वर्ष की आयु में सबसे छोटी उंगली में सात दिन तब उठाये रखा और ब्रज वासियों के प्राण बचाये, वह कृष्ण कहीं चले नहीं गये, वह तो यहीं हैं। भगवान् की मूर्ति को पत्थर मान लेना यह सबसे बड़ा पाप है। मूर्ति पत्थर नहीं होती। मूर्ति तो चैतन्य ब्रह्म है, मंत्रों के द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा की गई है। लाखों भक्त उसे भगवान् के रूप में देख रहे हैं। और फिर भी तुम्हें वह पत्थर दिख रहे हैं, अर्थात् तुम्हारी बुद्धि में पत्थर आ गया है। इसीलिए भगवतीय स्वरूप को ठीक भगवान् का रूप मानकर उसकी उपासना करनी चाहिए। जिस जिस भावना से भक्त भगवान् का ध्यान करता है, वैसा-वैसा ही शरीर भगवान् बना लिया करते हैं।

अपने भक्तों पर कृपा करने के लिये। भगवान् भावना से बने हुये हैं, जीव कर्मों से जुड़ा हुआ है। जीव कर्म के बंधनों में बंध कर पैदा होता है और ईश्वर अपनी इच्छा से प्रकट होते हैं। अपनी इच्छा से भगवान् अपनी आकृति बना लेते हैं। भगवान् राम का, श्री कृष्ण का शरीर पंचमहाभूतों से बना हुआ नहीं होता। उसमें हड्डी, चमड़ी, लहू, मांस नहीं होता, उनमें बुढ़ापा नहीं आता। वह दिव्य तन था, ज्योति ज्योति में समा गई। जो माया से पैदा होगा, जो प्रकृति से पैदा होगा, उसके जाने के बाद उसका कुछ न कुछ अंश रह जायेगा। लेकिन जहां प्रकृति है ही नहीं, वहां क्या शेष रहेगा? वह जहां से जैसे प्रकट हुए वैसे ही लीन हो जाते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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