पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि परमात्मा अलग-अलग कार्य करने के लिये पांच रूपों में अभिव्यक्त हुए हैं। प्रकृति के पांच तत्व है। प्रकृति में पृथ्वी,तेज,जल, वायु और आकाश। हर एक तत्व के अधिष्ठाता देव बन करके परमात्मा पांच रूपों में अभिव्यक्त हुए हैं। शास्त्रीय प्रमाणों से पंचदेवों की उपासना सम्पूर्ण कर्मों में प्रख्यात है। शब्द कल्पद्रुम कोष में लिखा है। आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवं। पंचदैवतमित्यक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत्। पंचदेवों की उपासना का रहस्य पंच भूतों के साथ सम्बन्धित है। पंच भूतों में पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश प्रख्यात है। और इन्हीं के आधिपत्य के कारण से आदित्य, गणनाथ, देवी, रुद्र और केशव यह पंचदेव भी पूजनीय प्रख्यात है। एक-एक तत्व का एक-एक देवता स्वामी है। महाभूत अधिपति
1- क्षिति (पृथ्वी) शिव, 2-अप (जल) गणेश, 3-तेज (अग्नि) शक्ति (महेश्वरी) 4- मारुत् (वायू) सूर्य (अग्नि) 5- व्योम(आकाश) विष्णु, आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्र्चैव महेश्वरी।
वायोः सूर्यः क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिपः। ये विषय गम्भीरता से माननीय है। भगवान् शिव पृथ्वी तत्व के अधिपति होने के कारण उनकी पार्थिव पूजा का विधान है। भगवान विष्णु के आकाश तत्व की अधिपति होने के कारण उनकी शब्दों द्वारा स्तुति का विधान है। भगवती देवी के अग्नि तत्व के अधिपति होने के कारण उनका अग्निकुंड में हवनादि के द्वारा पूजन का विधान है। सूर्य के वायु तत्व के अधिपति होने के कारण प्राण की रक्षा के लिए नमस्कारादि द्वारा पूजन का विधान है। गणेश के जल तत्व के अधिपति होने के कारण उनकी सर्वप्रथम पूजा का विधान है। श्री मनुस्मृति एवं श्री गणेश महापुराण का कथन है- अप एवससर्जादौ तासु बीजमवासृजत। इस प्रमाण से सृष्टि के आदि में एकमात्र वर्तमान जल का अधिपति गणेश है। अतः जितने भी अनुष्ठान किए जाएं, उनके आरम्भ में गणेश पूजन आवश्यक है।श्रीगणेशमहापुराण एवं श्री गणपत्यथर्वशीर्ष उपनिषद में लिखा है कि जो गणेश जी का पूजन करता है। वह संपूर्ण दोषों से,सम्पूर्ण विघ्नों से, संपूर्ण पापों से, छूट जाता है और वही सर्वविद है। महाविघ्नात् प्रमुच्यते।महापापात् प्रमुच्यते।दोषात् प्रमुच्यते। स सर्वविद् भवति। जय श्री सिद्धिविनायक।