धर्म। इस वर्ष आमलकी एकादशी 03 मार्च शुक्रवार को है। आमलकी एकादशी में भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है, इसलिए इस व्रत को आंवला एकादशी भी कहते हैं। व्रत के दिन आंवले का भोग लगाते हैं, आंवला खाते हैं और उसके पेड़ की परिक्रमा करके सूत लपेटे जाते हैं। इस दिन व्रत रखकर पूजा करते समय आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनते हैं, जिससे व्रत का पूरा फल मिलता है।
आमलकी एकादशी व्रत से 1000 गौ दान का पुण्य
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, महर्षि वशिष्ठ ने राजा मांधाता को बताया था कि जो भी व्यक्ति आमलकी एकादशी व्रत विधिपूर्वक करता है, उसे 1 हजार गायों के दान करने के बाराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो भी व्यक्ति मोक्ष और स्वर्ग की कामना रखता है, उसे आमलकी एकादशी व्रत विधि विधान से करना चाहिए।
आमलकी एकादशी व्रत कथा
यह कथा महर्षि वशिष्ठ ने राजा मांधाता को सुनाई थी। वैदिश नगर में राजा चैतरथ का शासन था। उस राज्य में सभी वर्ग के लोग धर्म पुण्य करते थे। वे सभी भगवान विष्णु के परम भक्त थे। वे एकादशी व्रत रखते और पूजन करते थे।
फाल्गुन शुक्ल एकादशी को सभी लोग व्रत थे। मंदिर में सभी ने पूजा की, कथा सुनी और रात्रि जागरण किया। वहां पर एक शिकारी भी बैठा था। वह भी एकादशी व्रत के पूजा में शामिल था। अगले दिन वह घर गया और भोजन करके सो गया। उसका निधन हो गया।
उसने राजा विदूरथ के पुत्र वसुरथ के रुप में जन्म लिया। एकादशी व्रत की कथा सुनने और पूजा में शामिल होने से मिले पुण्य फल से वह राजा के घर में पैदा हुआ था। बाद में वह भी राजा बना। एक दिन वह जंगल में रास्ता भटक गया। वहां एक पेड़ के नीचे सो गया। उस पर जंगली लोगों ने हमला किया, लेकिन उसके शरीर से प्रकट हुई स्त्री ने उन सबको मार डाला और राजा बच गया।
राजा जब नींद से जगा तो देखा कि काफी संख्या में लोग मरे हुए हैं, उनके हाथों में अस्त्र शस्त्र थे। तब राजा ने कहा कि इन लोगों से उसकी रक्षा किसने की। तब आकाशवाणी हुई कि भगवान विष्णु के सिवाय तुम्हारी रक्षा कौन कर सकता है। उसके बाद राजा अपने राज्य लौट आया और सुखपूर्वक शासन करने लगा।