हेल्थ। इस दुनिया में अधिकतर लोग ऐसे है जो सोते वक्त खर्राटे लेते है। खर्राटे लेने वाले इंसान के पास यदि कोई अन्य व्यक्ति सो जाए तो वह परेशान हो सकता है। लोग इस समस्या को सामान्य बात मानकर गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन ऐसा करना गलत है। यदि किसी को इस तरह की परेशानी है तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस तरह की दिक्कत बच्चों को भी हो सकती है। बच्चों में इस तरह की दिक्कत को हल्के में नहीं लेना चाहिए। तो चलिए जानते हैं बच्चों में खर्राटे लेना किस परेशानी का है कारण और क्या हैं इसके बचाव के तरीके।
खर्राटे आने की वजह
खर्राटे आना कई बार सामान्य प्रक्रिया मानी जाती है। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसस) समस्या तब होती है, जब सोते वक्त हवा के ऊपरी मार्ग में या तो पूरी तरह से बाधा आती है या फिर आंशिक तौर पर आ जाती है। इस तरह की दिक्कत होने पर खर्राटे आना शुरू हो जाता है। हालांकि इस तरह की दिक्कत सामान्यतौर पर बड़ों को होती है, लेकिन कई बार इस तरह की परेशानियां बच्चों में भी देखी जाती है। इस तरह की दिक्कत होने पर डॉक्टर की सलाह लेना बहुत जरूरी है।
कैसे होती है परेशानी की शुरुआत
बच्चों में खर्राटे की परेशानी होने के बेहद कम चांस होते हैं। ज्यादातर बच्चों में इस तरह की समस्या के 1 से 10 फीसदी तक चांस होते हैं। बता दें कि बच्चों में 3 से 12 फीसदी तक खर्राटे लेना एक सामान्य सी बात होती है। इस तरह की दिक्कत होने से बच्चों को सांस लेने तकलीफ होती है, जिसकी वजह से नींद भी पूरी नहीं हो पाती है। इसके चलते बच्चे की सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
बच्चों में इस तरह के दिखते हैं लक्षण
बच्चों में खर्राटे लेने के अलावा कई और भी लक्षण हो सकते हैं, जिनकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जैसे- मुंह से सांस लेना, ठीक से नहीं सोना, रात को बार-बार नींद से उठ जाना इत्यादि। ऐसी दिक्कत होने से बच्चे में हाइपर एक्टिव, चिड़चिड़ापन और एग्रेशन व्यवहार संबंधी समस्याएं भी उनमें दिखने लगती हैं। बच्चों में टॉन्सिल्स होना, मोटापा, क्रेनियाफैसियल असामान्यताएं और न्यूरो मस्कुलर डिसऑर्डर जैसे लक्षण भी खर्राटे का रिस्क बढ़ाते हैं।
ग्रोथ और हेल्थ पर पड़ सकता है गलत असर
बच्चों में खर्राटे लेने की समस्या से उसके ग्रोथ और हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह एक गंभीर बीमारी बन सकती है। इस परेशानी का समय पर इलाज बहुत जरूरी है। इसकी अनदेखी करने से बच्चे के बिहेवियर में बदलाव, ध्यान भंग होना, सीखने की क्षमता प्रभावित होना, पढ़ाई में मन ना लगना और शारीरिक ग्रोथ पर बुरा असर पड़ने का खतरा बना रहता है।
ऐसे पाएं छुटकारा
इस बीमारी के इलाज के लिए गंभीरता जरूरी है। शुरुआती मामलों में कुछ आदतें बदलने से भी राहत मिलना संभव है। इसके लिए जरूरी है कि वजन घटाएं, खान-पान दुरुस्त करें और एक साइड होकर नींद लें। इसके अलावा कुछ मेडिकल ट्रीटमेंट भी होता है। हालांकि बड़ों के लिए है, लेकिन बच्चों को दिक्कत हो तो सोने से पहले नेजल स्प्रे करें, इससे उन्हें काफी राहत मिलती है। इसके साथ ही बच्चों में खर्राटे की परेशानी दूर करने के लिए एडीनोटोनसिलेक्टोमी सर्जरी की जाती है। इसके जरिए टॉन्सिल्स और एडेनोइड्स को हटाकर हवा का फ्लो ठीक किया जाता है। इसके अलावा रुकावट को हटाने के लिए नेसल सर्जरी भी की जाती है।
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