असम। नागालैण्ड सरकार का गोलीबारी के एक मामले में मेजर रैंक के एक अधिकारी समेत 30 जवानों पर मुकदमा चलाने का फैसला पूरी तरह से उचित है। साथ ही यह उन सुरक्षाकर्मियों के लिए कड़ा संदेश भी है जो मुठभेड़ के नाम अंधाधुंध फायरिंग करते हैं। इसका खामियाजा कभी कभी आम लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है।
नागालैण्ड पुलिस ने पैरा स्पेशल फोर्स के तीस कर्मियों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया है जिसमें कहा गया है कि पिछले साल चार दिसंबर को मोन जिले के आटिंगतिरू इलाके में सेना के एक अभियान के दौरान उग्रवादियों पर घात लगाकर किए गए हमले में 13 लोग मारे गये थे।घटना के एक दिन बाद पुलिस ने सेना के अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया और इसके जांच की जिम्मेदारी एक विशेष दल को सौंप दी गयी।
एसआईटी ने गहन जांच में साक्ष्य एकत्र किया और 30 जवानों को दोषी पाया जिन्होंने अपनी विवेकहीनता का परिचय देते हुए अंधाधुंध फायरिंग की जिसमें 13 निर्दोष लोग मारे गये। इस तरह की घटना किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। देश के अन्य राज्यों से भी फर्जी मुठभेड़ की घटनाएं सामने आती रहती हैं जिसमें सुरक्षाकर्मी पदोन्नति की लालच में आम लोगों को निशाना बनाते हैं जो अत्यंत निन्दनीय है।
कानून शांति और सौहार्द की व्यवस्था बनाए रखने के लिए है, किसी की हत्या के लिए नहीं। इस तरह की घटनाओं से लोगों में गलत संदेश जाएगा और कानून पर से भरोसा भी कम होगा। जब रक्षक ही भक्षक बन जायंगे तो विद्रोह की स्थिति उत्पन्न होगी जिस पर नियंत्रण के लिए कड़ाई करना मानवाधिकार का उल्लंघन होगा। इस समय देश को अस्थिर करने में जिस तरह विदेशी ताकतें जुटी हैं उसमें इस तरह की घटनाएं उपद्रवियों के लिए ढाल बन जायगी जो उचित नहीं है। नागालैण्ड सरकार का फैसला न्याय संगत है। इस मामले की न्यायिक प्रक्रिया त्वरित गति से पूरी की जानी चाहिए ताकि लोगों का कानून पर विश्वास बना रहे।