पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, परमात्मा को वेदों ने निराकार, निर्विकार कूटस्थ ब्रह्म कहा है। परमात्मा में विकार नहीं है और सृष्टि बिना विकार के बन नहीं सकती। जब किसी वस्तु का निर्माण करना होता है, तब उसमें कोई विकार आता ही है। सोना पिघलेगा तभी उसके आभूषण बनेंगे। मिट्टी को पेड़ा बनने से घड़ा बनता है। जहां भी प्रकार है वहां विकार है। हर प्रकार में विकार होता है। यदि मान लिया जाए कि परमात्मा ही संसार बना, फिर परमात्मा में विकार आ जायेगा और वेद कहते हैं कि परमात्मा निर्विकार है। उसमें विकार नहीं है। इसका सूक्ष्म विवेचन यह है कि परमात्मा के सानिध्य में प्रकृति ही संसार का निर्माण करती है। परमात्मा ज्यों के त्यों न्यूट्रल रहते हैं और प्रकृति अपना कार्य करने लगती है, जैसे- चुंबक लोहे से बना है, चुंबक निर्विकार और निष्क्रिय रहता है और लोहे को सक्रिय बना देता है।
चुंबक स्वयं निष्क्रिय रहकर लोहे में सक्रियता पैदा कर देता है, इसी प्रकार परमात्मा स्वयं निर्विकार, निराकार रहते हुए अपनी अनिर्वचनीय माया के द्वारा संसार का निर्माण करते हैं और स्वयं न्यूट्रल ही बने रहते हैं। इस अनिर्वचनीय माया के दो स्वरूप हैं, विद्या और अविद्या। उसका जो अविद्या अंश है, वह पंचमहाभूतों का निर्माण करके शरीर बनाता है। और जो विद्या अंश है, वह ज्ञान देकर, बुद्धि देकर, संसार से छुड़ा देता है। जैसे गुलाब के पौधे में एक चुभने वाला कांटा भी पैदा होता है और दूसरा सुगंधित पुष्प भी पैदा होता है। दोनों ही एक बीज से पैदा हुई एक कांटा है जो चुभ रहा है और दूसरा पूष्प है जो सुगंध दे रहा है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।