SC: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता के खिलाफ दर्ज याचिकाओं पर आज अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए सरकार को किसी अन्य विकल्प पर विचार करने को कहा है.
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को हो रही फंडिंग की जानकारी मिलना बहुत ही जरूरी है. वहीं, इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है. वहीं, पीठ में दो अलग विचार भी रहे. बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले वर्ष ही दो नवंबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया.
SC: कोई भी खरीद सकता है चुनावी ब्रॉन्ड
चुनावी बॉन्ड योजना के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित ईकाई द्वारा खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 (ए) के अंतर्गत पंजीकृत राजनीतिक दल और लोकसभा या विधानसभा के बीते चुनाओं में से कम से कम एक फीसदी वोट पाने वाले दल चुनावी बॉन्ड प्राप्त कर सकते हैं.
SC: क्या है चुनावी बॉण्ड योजना?
आपको बता दें कि इस योजना को सरकार द्वारा 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया गया था. इस योजना के मुताबिक, चुनावी बॉण्ड को भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई की ओर से खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के अंतर्गत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड के पात्र हैं. बशर्ते उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिला हुआ होना चाहिए.
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