नई दिल्ली। पूरी दुनिया में जोर शोर से हो रहे प्राकृतिक परिवर्तन का न केवल लोगों के जीवन पर असर पड़ेगा, बल्कि उनकी आय पर भी इसका भारी असर होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यदि ऐसा ही चलता रहा तो आगामी 28 वर्षों में भारत के जीडीपी में 15 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया के अन्य देश जैसे बंगलादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका भी इससे बुरी तरह प्रभावित होंगे।
खेती-किसानी पर इसका बेहद बुरा असर पड़ने वाला है। भारत सरकार जलवायु परिवर्तन को लेकर बेहद गम्भीर है। जलवायु परिवर्तन से चिंतित दुनिया भर के प्रतिनिधियों ने वर्ष 2015 में ऐतिहासिक पेरिस समझौता किया। गौर करने वाली बात यह है कि इससे पहले दिसंबर 1997 में जापान के क्योटो शहर में भी ऐसा ही एक समझौता किया जा चुका है।
क्योटो समझौते में भी धरती के तापमान को करने के लिए दुनिया भर के 192 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। हस्ताक्षर करने बाद कनाडा इससे बाहर हो गया था। पेरिस समझौते के तहत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जाना है, जिससे कि इस सदी में वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेल्शियस कम किया जा सके। इस समझौते पर 195 देशों की सरकारों ने हस्ताक्षर किए थे।
फिलहाल इसमें कुल 197 देश शामिल हैं। रूस, तुर्की और ईरान जैसे प्रमुख देश इस समझौते में शामिल नहीं हैं। यह समझना होगा कि धरती को तो टुकड़ों में बांटा जा सकता है, लेकिन हवा, पानी, आग और आकाश नहीं बांटे जा सकते हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि सभी देश पेरिस समझौते का सही तरीके पालन करें तो भी इस सदी के अंत तक धरती का तापमान तीन डिग्री सेल्शियस तक बढ़ जाएगा।
कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार केवल दो डिग्री सेल्शियस की वृद्धि भी दुनिया में तबाही मचा सकती है। जाहिर है जलवायु परिवर्तन की समस्या से निबटने के लिए अभी तक जो भी फैसले किए गए हैं वह अपर्याप्त हैं। सबको पता है कि अमेरिका और चीन सबसे अधिक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन करते हैं और दूसरे देशों से पेरिस समझौते का पालन करने की उम्मींद करते हैं।
इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से निबटने के लिए अलग से एक ‘जलवायु परिवर्तन तथा नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय‘ का गठन किया गया है। यह मंत्रालय जल संचय और स्वच्छ ईंधन के इस्तेमाल को बढावा देने के लिए काम कर रहा है। भारत को वनों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए गम्भीरता से प्रयास करना चाहिए। प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके जीने की कला को अपनाकर हम इस खबसूरत ग्रह को नष्ट होने से बचा सकते हैं।