धर्म। न्याय के कारक ग्रह शनि 30 वर्षो बाद अपनी राशि मकर को छोड़कर अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में 17 जनवरी को रात्रि 8 बजकर 3 मिनट पर प्रवेश कर रहे हैं। इनका यह गोचर मानव जगत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्योंकि शनि कर्म के देवता है। सभी के कर्मो का लेखा-जोखा रखते है। अतः इनका अपनी कुंभ राशि में आना कर्म के अनुसार फल का समय है। शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक रहते हैं। यह बहुत ही मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं। इनका प्रभाव हर क्षेत्र में देखने को मिलता है।
शनि का प्रभाव जिनकी भी साढ़ेसाती, ढैया या दशा या अंतर्दशा शनि की चल रही होगी उन पर शनि के इस गोचर का प्रभाव अधिक पड़ेगा। शनि के गोचर से धनु राशि से साढ़ेसाती खत्म हो जाएगी तथा मीन राशि पर साढ़ेसाती की शुरुआत हो जाएगी। मकर राशि के अंतिम चरण की तथा कुंभ राशि के दूसरे चरण की शुरुआत हो जाएगी। शनि कर्म के ग्रह हैं। शनि साढ़ेसाती काल में दुःख ही नहीं देते, सुख भी देते हैं। बल्कि सुख के दिन दुःख के दिनों से ज्यादा होते हैं। बल्कि जन्म लग्न, सूर्य लग्न तथा चन्द्र लग्न, इनसे ही जन्म पत्रिका के केन्द्र भाव में या त्रिकोण भाव में शनि स्थित हों तो अत्यंत शुभ फल देने की स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्र राशि से चौथे और आठवें भाव में अगर शनि गोचर करें तो इसे ढैय्या कहते हैं और इसके अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
विंशोत्तरी दशा पद्धति में 120 वर्ष की गणना की जाती है जिनमें से शनिदेव को 19 वर्ष प्रदान किये गए हैं। शनि की दशा के समय ही यदि साढ़े साती आ जाये तो परिणामों में तीव्रता आ जाती है। ज्योतिष में शनि को दण्डनायक कहा गया है और ये कर्मों का फल प्रदान करते हैं। शनि की दशा या साढ़े साती काल में व्यक्ति साधारण नहीं रह पाता, बल्कि उसका उत्थान या पतन देखने को मिलता है।
शनि के कुंभ में प्रवेश के बाद बदलेगा सांसारिक परिदृश्य:-
शनि देव अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में प्रवेश कर रहे हैं, कुंभ का शाब्दिक अर्थ घट, घड़ा या कलश होता है। भारतीय वैदिक संस्कृति में घट स्थापन श्रेष्ठ कार्य माना गया है और आमतौर से किसी भी कर्मकाण्ड में घट स्थापन का मतलब वरुण स्थापन माना जाता है जो कि पंचतत्त्वों में से एक हैं। जब पूजा-पाठ में कलश स्थापना करते हैं तो उस कलश के अन्दर नदियों का जल, सप्त सागरों का जल डाला जाता है। कलश के चारों वेदों के नाम का तिलक लगाया जाता है और वरुण देवता के आह्वान के साथ घट स्थापना की जाती है।
नवरात्रि की पूजा भी ऐसे ही प्रारम्भ की जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि कुम्भ राशि से घट स्थापना का संकेत मिलता है और भारतीय संस्कृति की पहचान और यज्ञ संस्कृति की पहचान घट स्थापना से ही होती है। अब जब कि शनि अपनी ही राशि कुम्भ को समृद्ध करने आ रहे हैं तो घट का अर्थात् वैदिक संस्कृति का प्रभुत्व बढ़ने का समय भी आ रहा है।
शनि के कुंभ राशि में प्रवेश करने के बाद सांसारिक परिदृश्य बदलेगा। धर्म, अध्यात्म, संस्कृति की ओर जनमानस का विशेष चिंतन होगा। धार्मिक शोध होंगे जिनके माध्यम से व्याधियों के निराकरण की राह निकलेगी। वहीं, व्यवसायिक उपक्रमों में परिवर्तन के साथ-साथ सेवा कार्य के क्षेत्र में भी पदों की बढ़ोतरी होने से रोजगार के अवसर मिलेंगे। 17 जनवरी से धनु राशि वालों की साढ़ेसाती से तथा मिथुन और तुला राशि के लोगों को ढैय्या से मुक्ति मिलेगी। इस दौरान शनि 140 दिनों तक वक्री रहेंगे जबकि और 39 दिनों तक अस्त रहेंगे।
साल 2023 में शनि का राशि परिवर्तन और उसके बाद उनका अस्त होना, उदय होना, उल्टी चाल चलना और फिर सीधी चाल चलना सभी 12 राशियों को प्रभावित करेगा। अच्छे फल भी देगा, बुरे फल भी देगा। उपलब्धियां भी देगा। समस्याएं भी देगा यानी विभिन्न राशियों पर शनि की चाल अलग-अलग असर डालेगी। अलग-अलग अनुभव देगी।
शनि की साढ़ेसाती झेल रहे मकर और कुंभ राशि वालों को भी शनिदेव के राशि बदलने पर विशेष फल प्राप्त होंगे। अगर विदेश यात्रा के लिए प्रोफाइल लगाई है तो विदेश जाने का सपना साकार हो सकता है। विदेश में पढ़ाई करने के इच्छुक विद्यार्थियों की मुराद भी पूरी होगी। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। प्रमोशन या फिर कोई नया दायित्व मिल सकता है, जिससे मकर और कुंभ राशि वालों का रुतबा बढ़ेगा। शनि के राशि परिवर्तन से कर्क राशि और वृश्चिक राशि पर शनि की ढैया शुरू हो जाएगी और मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती शुरू हो जाएगी। इससे इन राशि वालों को थोड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आर्थिक स्थिति और सेहत प्रभावित हो सकती है।