नई दिल्ली। संसद सत्र से पहले भारतीय के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने कहा कि विधायिका कानूनों के प्रभाव का अध्ययन या आकलन नहीं करती है। ऐसा न होने से कभी-कभी बड़े मुद्दे उठ खड़े होते हैं और परिणामस्वरूप न्यायपालिका पर मामलों का अधिक बोझ पड़ जाता है। नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के चेक बाउंस के मामलों से संबंधित धारा-138 का उदाहरण देते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मजिस्ट्रेट जो पहले से ही मुकदमों के बोझ तले दबे होते हैं, उन पर हजारों मामलों का और बोझ पड़ जाता है। इसी तरह विशेष बुनियादी ढांचे के निर्माण के बिना मौजूदा अदालतों को वाणिज्यिक अदालतों के रूप में बदल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से लंबित मामलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू की उपस्थिति में संविधान दिवस समारोह के समापन समारोह में चीफ जस्टिस ने कहा कि न्यायपालिका में लंबित मामलों का मुद्दा बहुआयामी है और उम्मीद है कि सरकार इस दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान प्राप्त सुझावों और मौजूदा मुद्दों का समाधान निकालने पर विचार करेगी। उन्होंने कहा कि हमें यह याद रखना चाहिए कि आलोचना का सामना करने या बाधाएं आने के बावजूद न्याय प्रदान करने का हमारा मिशन नहीं रुक सकता। हमें न्यायपालिका को मजबूत करने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए आगे बढ़ना होगा। वहीं कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि ऐसी स्थिति नहीं हो सकती जब विधायिका द्वारा पारित कानूनों और न्यायपालिका द्वारा दिए गए फैसलों को लागू करना मुश्किल हो। मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों के बीच संतुलन खोजने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि कभी-कभी अपने अधिकारों की तलाश में लोग दूसरों के अधिकारों के साथ-साथ अपने स्वयं के कर्तव्यों के बारे में भूल जाते हैं। उन्होंने कहा कि संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयक और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले देश के कानून हैं। हम ऐसी स्थिति में नहीं हो सकते जहां सर्वोच्च न्यायालय या हाईकोर्ट या विधानसभा और संसद द्वारा पारित किए जाने के बावजूद कानूनों को लागू करना मुश्किल हो। हम सभी को इस पर विचार करना होगा। विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका व समाज के सभी वर्गों को सोचना होगा कि देश संविधान के अनुसार चलता है। वहीं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने संबोधन में न्यायाधीशों को याद दिलाया कि अदालत कक्षों के अंदर बोलने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करना उन पर निर्भर करता है। उन्होंने न्यायधीशों व वकीलों को संबोधित करते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपने अपने लिए एक उच्च ‘बार’ निर्धारित किया है। इसलिए यह न्यायाधीशों पर भी निर्भर करता है कि वे अदालतों में बोलने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें। विवेकी टिप्पणी भले ही वह अच्छे इरादे से किया गया है, लेकिन वह न्यायपालिका को नीचा दिखाने के लिए संदिग्ध व्याख्याओं की जगह बनाता है।