क्‍या है अल नीनो और ला नीना? मानसून पर क्‍या होता है इनका असर?

रोचक जानकारी। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमी घटनाएं तो बढ़ ही रही हैं इसके साथ सामान्य मौसम  स्वरूपों में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। भारत में भी आज से 50 साल पहले जिस तरह की बारिश होती थी और जैसे तापमान में विविधताएं आती थीं अब वैसा देखने को नहीं मिलता है। पिछले कुछ दशकों से भारत के मौसमी गतिविधियों पर अल नीनो और ला नीना का असर बढ़ता हुआ दिख रहा है।

हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो ने पुष्टि की है कि इस बार भी लगातार तीसरे साल प्रशांत महासागर में ला नीना का प्रभाव देखने को मिलेगा। यह जानना बहुत जरूरी है कि आखिर अल नीनो और ला नीना क्या हैं और ये भारत में बारिश और तापमान के कैसे प्रभावित करते हैं।

भारत और प्रशांत महासागर:-

दुनिया के हर कोने का मौसम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दूसरी जगहों को किसी ना किसी तरह प्रभावित जरूर करता है। लेकिन भारत की जलवायु पर प्रशांत महासागर का गहरा असर होता है। खास तौर से भारत का मानसून प्रशांत महासागर की जलवायु पर ही आधारित होता है इसलिए उसके मौसम में बदलाव भारत को सीधे प्रभावित करेगा।

ये किस तरह का असर होता है:-  

समान्य हालात में प्रशांत महासागर से व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा के समांतर पश्चिम की ओर बहती हैं। ये हवाएं दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर गर्म पानी को ले जाती हैं। वहीं गर्म पानी की ठंडा पानी समुद्र नीचे से ऊपर की ओर उमड़ता है। अल नीनो और ला नीना दो विपरीत प्रभाव हैं जिनका पूरी दुनिया के मौसम, जंगल की आग, पारिस्थितिकी तंत्रों और यहां तक कि अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ता है। सामान्यतः इन दोनों के संस्करण नौ से 12 महीने तक चलते हैं और कई बार इनका प्रभाव सालों तक रहता है। इनके आने का कोई नियमित क्रम नहीं होता है और ये हर दो से सात साल के बीच आते हैं। देखा गया है कि अल नीनो ला नीना की तुलना में ज्यादा बार आता है।

क्या होता है अल नीनो:-

अल नीनो का मतलब स्पेनिश भाषा में छोटा लड़का होता है।  यह प्रशांत महासागर में असामान्य रूप से गर्म पानी की उपस्थिति के जलवायु प्रभाव का नाम है जो दक्षिणी अमेरिकी मछुआरों ने दिया है। इसका सबसे प्रमुख असर यही होता है कि इससे व्यापारिक पवनें कमजोर हो जाती हैं और यह गर्म पानी अमेरिकी महाद्वीपों के पश्चिमी तटों की ओर जाता दिखाई देता है।  इस गर्म पानी के कारण प्रशांत महासागर मे चलने वाली पवनें अपनी स्थिति से दक्षिण की ओर जाने लगती हैं।

क्या होता है ला नीना:-
दूसरी तरफ ला नीना, अल नीनो का विपरित प्रभाव है। ला नीना का स्पेनिश भाषा में मतलब छोटी लड़की होता है। इसमें अमेरिकी महाद्वीपों के  पश्चिमी तटों के  पास के प्रशांत महासागर का पानी असामान्य रूप से ठंडा हो जाता है जिससे व्यापारिक पवनें बहुत मजबूत हो जाती हैं। इससे प्रशांत महासागर का गर्म पानी एशिया की ओर खिसकने लगता है।

क्या होता है इनका भारत पर असर:-
अल नीनो वाले प्रभाव के वर्षों में भारत में बहुत ज्यादा गर्मी देखने को मिलती हैं और उस साल मानसून में सामान्य से कम बारिश भी देखने को मिलती है। हालांकि इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं। लेकिन ला नीनो के सालों में इस तरह का बर्ताव देखने को मिलता रहा है। ला नीना के वर्षों में भारत में मानसूनी बारिश सामान्य से ज्यादा होती है और उस साल भारत में ठंड भी ज्यादा और ज्यादा समय तक रहती हैं। इस साल भारत में सामान्य से सात प्रतिशत ज्यादा बारिश देखने को मिली है।

भारत में समान्य से ज्यादा बारिश:-
इस साल भारत में अगस्त महीने तक सामान्य से सात प्रतिशत ज्यादा बारिश देखने को मिली है। 36 राज्यों में से 30 राज्यों में सामान्य से अधिक बारिश हुई है। जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार और मणिपुर में सामान्य से काफी कम बारिश हुई है। विशेषज्ञ वैसे तो ला नीना के प्रभाव को भारत के लिए अच्छा मानते हैं, लेकिन उनका यह भी मानना है कि लागातार तीसरे साल इसका असर चौंकाने वाली बात है।

ला नीना का दूसरा प्रभाव यह है कि इसकी वजह से अटलांटिक महासागर में हरिकेन और बंगाल की खाड़ी में  ज्यादा संख्या में चक्रवाती तूफान बनते हैं। हिंद महासागर के उत्तरी इलाकों में नमी ज्यादा  देखने को मिलती है। लेकिन इसके साथ ही एक बड़ा प्रभाव यह भी होता है कि भारत में सर्दियों का मौसम ज्यादा ठंडा और लंबा भी हो जाता है। पिछले दो सालों में ऐसा ही देखने को मिला है।

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