राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कथा का प्रसंग-श्रीकर्माबाईजी की कथा। प्रादुर्भाव स्थल-ग्राम-मनाना, (कालवा प्राचीन नाम) बोरावल मकराना के समीप। प्राकट्य स्थल- पर श्रीकर्माबाईजी का मंदिर बना है। श्रीकर्माबाईजी एक भक्ताबाई थी उसका नाम कर्मा यह सुंदर नाम था। वह आचार-विचार की रीति-भाँति को नहीं जानती थी, परंतु अपने अपार वात्सल्य-प्रेमवश नित्य प्रातःकाल खिचड़ी बनाकर श्री जगन्नाथ जी को भोग लगाती थीं। श्री जगन्नाथ जी स्वयं प्रकट होकर बड़े प्रेम से भोजन करते थे। मंदिर में जितने भोग लगते थे, उनमें ऐसा स्वाद नहीं आता था। जैसा कि- श्रीकर्माबाई की खिचड़ी में था। एक दिन वहां कोई संत पहुंच गये। (उन्होंने देखा कि बिना स्नान किए बिना चौका-बर्तन किये ही खिचड़ी बना रही है) संत ने इसे अपराध माना और दुःखी होकर लंबी श्वासें लेकर श्रीकर्माबाई को आचार विचार के अनुसार पवित्रता पूर्वक खिचड़ी बनाने का उपदेश दिया। दूसरे दिन संत की बताई विधि के अनुसार श्रीकर्माबाई ने खिचड़ी बनाई तो बड़ी देर हो गई। श्री जगन्नाथ जी खिचड़ी खा रहे थे। उधर मंदिर में पुजारी ने पट खोले। शीघ्रता से भगवान बिना मुंह धोये चले आये। उनके मुख पर जूठन लगी थी। उसे पुजारी ने देखा। सत्संग के अमृतबिंदु-साधना पथ में बड़ा धैर्य चाहिये, घबड़ाने, ऊबने या निराश होने से काम नहीं होगा। झाड़ू से घर साफ कर लेने पर भी जैसे धूल जमी हुई सी दिखाई पड़ती है, उसी प्रकार मन को संस्कारों से रहित करते समय यदि मन और भी अस्थिर या आपरिछिन्न दिखे तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पर इससे डरकर झाड़ू लगाना बंद नहीं करना चाहिए। इस प्रकार की दृढ़ प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए कि किसी प्रकार का भी वृथा चिंतन या मिथ्या संकल्पों को मन में नहीं आने दिया जायेगा। बड़ी चेष्टा, बड़ी दृढ़ता रखने पर भी मन साधक की चेष्टाओं को कई बार व्यर्थ कर देता है। साधक तो समझता है कि मैं ध्यान कर रहा हूँ पर मन देवता संकल्प विकल्पों की पूजा में लग जाते हैं। जब साधक मन की ओर देखता है तो उसे आश्चर्य होता है कि यह क्या हुआ? इतने नये-नये संकल्प जिनकी भावना भी नहीं की गई थी- कहां से आ गये। किसी भी सफलता के लिये सतत प्रयास एवं ईश्वर की प्रार्थना आवश्यक है। चलने का नाम जीवन और रुकने का नाम मृत्यु है। इसीलिए उपनिषदों में “चर्वेति-चर्वेति शब्द का प्रयोग किया गया है, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाय तब तक रुकना नहीं चाहिए। संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि कल की कथा में संत दास श्री विमलानंद जी की कथा का गान किया जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश)। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।