Uttarakhand: उत्तराखंड में हाथियों की मौतों का आंकड़ा चिंताजनक है. वन विभाग के मुताबिक, पिछले 25 वर्षों में कुल 573 हाथी विभिन्न कारणों से मारे गए हैं. साल 2025 में अब तक 22 हाथियों की मौत दर्ज की गई है, यानी हर महीने लगभग दो हाथी अपनी जान गंवा रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि वन्यजीव संरक्षण व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करता है. किसानों द्वारा खेतों की सुरक्षा के लिए लगाए गए करंटयुक्त तार हाथियों के लिए मौत का जाल साबित हो रहे हैं.
79 की मौत का कारण अज्ञात
इन मौतों के अलावा 79 की मौत का कारण अज्ञात रहा है. आपसी संघर्ष में कई हाथियों की मौत हुई. इस अवधि में 102 हाथियों ने आपसी संघर्ष में जान गंवाई है. इसके अलावा 227 की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई.
हाथियों की संख्या भी बढ़ी
प्रदेश में हाथियों की अच्छी खासी संख्या है. यहां पर हाथियों की संख्या बढ़ी भी है. राज्य में वर्ष 2001 में हाथियों की संख्या 1507 थी, जो कि 2020 में 2026 तक पहुंच गई. इसके साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर भी चुनौती बढ़ रही है. तराई केंद्रीय, हरिद्वार, तराई पूर्वी, रामनगर वन प्रभाग से सटे आबादी वाले इलाके में हाथी पहुंच कर नुकसान पहुंचा रहे हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी
वन संरक्षक राजीव धीमान ने बताया कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए विभाग लगातार प्रयासरत है. रेलवे ट्रैक के आसपास पेट्रोलिंग बढ़ाई गई है और ट्रेन की गति सीमित करने के उपाय किए गए हैं. वहीं, हरिद्वार वन प्रभाग के डीएफओ स्वप्निल अनिरुद्ध के अनुसार, हाथियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खेताें में लगी 40 अवैध करंट युक्त तारबाड़ें हटाई गईं, जिनसे हाथियों के लिए खतरा था. इस संबंध में एक मुकदमा भी दर्ज किया गया है.
वन विभाग का कहना है कि जनजागरूकता और ग्रामीणों के सहयोग से ही मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम किया जा सकता है. विभाग आने वाले समय में निगरानी और रोकथाम के लिए सैटेलाइट ट्रैकिंग और इलेक्ट्रिक फेंसिंग जैसे आधुनिक उपायों पर भी विचार कर रहा है.
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